उर्दू के प्रसिद्ध शायर ख्वाजा दिल मोहम्मद जी ने भी सरल उर्दू पद में श्री गीता जी का श्लोकशः अनुवाद किया है। वंदनीय सदगुरुदेव "स्वामी श्रीगीतानंद जी महाराज" के आशीर्वाद से ये छोटा सा प्रयास है हमारी तरफ से गीता जी का उर्दू पद्यानुवाद पर प्रकाश डालने की कोशिश की गई है। आशा है कि ये गीता प्रेमियो में दिव्य रस का संचार करता हुआ उन्हें आध्यात्मिक मंज़िलो तक ले जाएगा।
नैमिषारण्य में सूत शौनक वार्ता चल रही थी। समस्त अवतारों की कथा लीला संदोह सुनने के उपरान्त ज्ञान की अन्यतम जिज्ञासा वाले शौनक मुनियों ने महर्षि लोमहर्षक के सुपुत्र श्री सूत जी से प्रश्न किया-भगवन्। द्वापर तक की व तदुपरांत बुद्धावतार की कथा पूरी हो चुकी। अब कृपया यह बताइये कि कलियुग जब पराकाष्ठा पर होगा तो भगवान का जन्म किस रूप में होगा। उस समय ऐसी कौन सी दुरात्माएं होंगी जिन्हें मारने के लिए भगवान अवतार लेंगे। वह कथा भी हमें विस्तार से सुनाएं। श्री सूत जी बोले-हे मुनीश्वरो-ब्रह्माजी ने अपनी पीठ से घोर मलीन पातक को उत्पन्न किया, जिसका नाम रखा गया अधर्म। अधर्म जब बड़ा हुआ तब उसका मिथ्या से विवाह कर दिया गया। दोनों के संयोग से महाक्रोधी पुत्र दम्भ तथा माया नाम की कन्या जन्मी। फिर दम्भ व माया के संयोग से लोभ नामक पुत्र और विकृति नामक कन्या हुई। दोनों ने क्रोध को जन्म दिया। क्रोध से हिंसा व दोनों के संयोग से काली देह वाले महाभयंकर कलि का जन्म हुआ। काकोदर कराल, चंचल, भयानक, दुर्गन्धयुक्त शरीर, द्यूत, मद्य, स्वर्ण और वेश्या में निवास करने वाले इस कलि की बहिन व संतानों के रूप में दुरुक्ति, भयानक, मृत्यु निरथ, यातना का जन्म हुआ जिसके हजारों अधर्मी पुत्र-पुत्री आधि-व्याधि, बुढ़ापा, दुख शोक,पतन,भोग-विलास आदि में निवास कर यज्ञ, तप,दान, स्वाध्याय, उपासना आदि का नाश करने लगे। पुराणकथाओं के अनुसार कलियुग में पाप की सीमा पार होने पर विश्व में दुष्टों के संहार क लिये कल्कि अवतार प्रकट होगा। कल्कि अवतार कलियुग के अन्त के लिये होगा। ये विष्णु जी के अवतारो मै से एक है। जब कलियुग मै लोग धर्म का अनुसरण करना बन्द कर देगे तब ये आवतार होगा। कल्कि की कथा कल्कि पुराण में आती है। कलियुग के अन्त में इक्कीसवीं बार विष्णु यश नामक ब्राह्मण के घर भगवान का कल्कि अवतार होगा| आज विश्व में मानवता त्राहि - त्राहि कर रही है और जो पापाचार बढ़ रहे हैं उनको देखकर बहुत कष्ट होता है। इस स्थिति में सनातन धर्म की मान्यता के अनुसार भगवान के अवतार की ओर ध्यान जाता है। ‘‘ यदा यदा हिधर्मस्य ग्लार्निभवति भारतःअभ्युत्थानम धर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम,परित्राणय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्, धर्मसंस्थापनार्थाय संभवामि युगे-युगे।’’ अर्थात् जब - जब धर्म की हानि होती है, भूमि पर भार बढ़ता है तब-तब धर्म की संस्थापना के लिए, साधुजनों की रक्षा के लिए, दुष्टों के विनाश के लिए मैं युग-युग में अवतार लेता हूँ। भगवान सूर्य के प्रकाश की पहली किरण जब भारत की पवित्र भूमि को छूती थी तो सारा वातावरण पूजा की घंटियों और शंखनाद से गूंज उठता था। मंदिरों के पट खुल जाते थे और भगवान का अभिषेक सारे भारत में एक साथ आरम्भ हो जाता था। भारत भूमि ऋषिओं और देवताओं की भूमि है, इसके कण - कण में आध्यात्मिक चेतना है, जो भगवान का नाम लेकर जागती थी और भगवान का कीर्तन करते हुए सोती थी। महर्षि वेद-व्यास जी ने श्रीमद् भागवत् के 12 स्कन्ध के दूसरे अध्याय में स्पष्ट शब्दों में कहा है कि श्री कृष्ण जब अपनी लीला संवरण करके परम धाम को पधार गये उसी समय से कलियुग ने संसार में प्रवेश किया। उसी के कारण मनुष्यों की मति - गति पाप की ओर ढुलक गयी। धर्म कष्ट से प्राप्त होता है और अधः पतन सुखों से, इसलिए भोली भाली जनता को गिरने में देर नहीं लगी। सत्य सनातन धर्म शाश्वत धर्म है। भगवान का मानवता के उत्थान, दुष्टों के संहार, धर्म की संस्थापना और भक्तों की रक्षा के लिए पंच भौतिक संसार में साक्षात् होना ही अवतार कहलाता है। केवल भगवत् अवतार से ही धर्म की पूर्ण संस्थापना हो सकती है। महात्माओं के आने से केवल आंशिक रूप से ही सत्य की स्थापना हो पाती है। युग परिवर्तनकारी भगवान श्री कल्कि के अवतार का प्रायोजन विश्व कल्याण है। भगवान का यह अवतार ‘‘निष्कलंक भगवान’’ के नाम से भी जाना जायेगा।