शनिवार, 11 मार्च 2017

SHRIMADBHAGWATGEETA

अन्तवत्तु फलं तेषां तद्भवत्यल्पमेधसाम्‌ ।देवान्देवयजो यान्ति मद्भक्ता यान्ति मामपि ॥ (गीता - ७/२३) 

कृष्ण ने अर्जुन से कहा : परंतु उन अल्प बुद्धिवालो का वह फल नाशवान है तथा वे देवताओ को पूजने वाले देवताओ को प्राप्त होते है और मेरे भक्त चाहे जैसे ही भजे , अन्त में मुझ को ही प्राप्त होते है।  

श्रीमद्धभगवतगीता का ज्ञान श्री कृष्ण जी ने अर्जुन को सुनाया।  जिस समय कौरव तथा पाण्डव अपनी सम्पति पर अपने हक का दावा करके युद्ध करने के लिए तैयार हो गए थे।  दोनों सेनाये आमने सामने कुरुक्षेत्र के मैदान में खड़ी थी।  अर्जुन ने देखा कि सामने वाली सेना में भीष्म पितामह, गुरु द्रोणाचार्य, रिश्तेदार,कौरव आदि आदि लड़ने मारने के लिए खड़े है।  कौरव और पाण्डव आपस में चचेरे भाई थे।  ये सब देख कर अर्जुन के भाव उदासीन हो गए और विचार किया ये संसार को भोगने के लिए मुझ को इन का वध करना पडेगा। अर्जुन ने धनुष और बाण छोड़ दिए और रथ के पिछले भाग में जा कर बैठ गए।  अर्जुन को इस दशा  में देख कर श्री कृष्ण जी ने अर्जुन को "गीते ज्ञान" रूप में 18 अध्याय 700 श्लोक सुनाये। यह महाभारत के भीष्मपर्व की अन्तर्गत दिया गया एक उपनिषद है।  इसमें एकेश्वरवाद, कर्मयोग, ज्ञानयोग, भक्तियोग, कि बहुत सुन्दर ढंग से चर्चा हुई है।  इसमे देह से अतीत आत्मा का निरूपण किया गया है।  

भगवन श्री कृष्ण अर्जुन से कहते है :


कर्मण्येवधकारस्ते मा फलीषु कदाचन।  
मा कर्मफलहेतुर्भुर्मा ते संगो$सत्वकर्मणी।। 

हे अर्जुन ! तेरा कर्म करने में ही अधिकार है, उस के फलों में अधिकार नही है।  इस लिए तू न तो अपने आप को कर्मो के फल का कारण समझ और न ही कर्म करने में तू आसक्त हो।  
{गीता 2 /47}



1 टिप्पणी:

Krishaneetu ने कहा…

jai shri krishan