गुरुवार, 16 मार्च 2017

प्रथम अध्याय : "अर्जुनविषादयोग" (श्लोक संख्या - 21-30)

ॐ श्रीपरमात्मने नमः। 
 "अर्जुनविषादयोग"
प्रथम अध्याय 

 जय श्री कृष्ण ! मेरे कृष्ण प्रेमी मित्रों ! अब तक आप ने पढ़ा। कल १० श्लोको की व्याख्या की गई थी, अब आगे: इसलिए सब मौर्चो पर अपनी अपनी जगह स्थित रहते हुए आप लोग सभी निःसंदेह भीष्म पितामह की ही सब ओर से रक्षा करे। (११-श्लोक) कौरवों में वृद्ध बड़े प्रतापी पितामह भीष्म ने उस दुर्योधन के ह्रदय में हर्ष उत्पन्न करते हुए उच्च स्वर से सिंह की दहाड़ के समान गरजकर शंख बजाया। (१२-श्लोक) इसके पश्चात शंख और नगाड़े तथा ढोल, मृन्दग और नरसिंघे आदि बाजे एक साथ ही बज उठे।  उनका वह शब्द बड़ा भयंकर हुआ। (१३ -श्लोक) इसके अनन्तर सफेद घोड़ो से युक्त उत्तम रथ में बेठै हुए श्रीकृष्ण महाराज और अर्जुन ने भी अलौकिक शंख बजाये। (१४-श्लोक) श्रीकृष्ण महराज ने पंचजन्य नामक और भयानक कर्मवाले भीमसेन ने पुण्ड्र नामक महाशंख बजाया। (१५-श्लोक) कुन्तीपुत्र राजा युधिष्ट्रर ने अनन्तविजयनामक और नकुल तथा सहदेव ने सुघोष और मणिपुष्पकनामक शंख बजाए। (१६ -श्लोक) श्रेष्ट धनुष वाले काशिराज और महारथी शिखण्डी एवं धृष्टधुम्न तथा राजा विराट और अजेय सात्यकि, राजा द्रुपद एवं द्रुपदी के पाचों पुत्र और बड़ी भुजावाले सुभद्रापुत्र अभिमन्यु इन सभी ने, हे राजन! सब ओर से अलग अलग शंख बजाये। (१७-१८ श्लोक)और उस भयानक शब्द ने आकाश और पृथ्वी को भी गुजते हुए ध्रतराष्ट्र के अथार्थ आपके पक्ष वालो के ह्रदय विदीर्ण कर दिये।हे राजन ! इसके बाद कपिध्वज अर्जुन ने मोर्चा बाँधकर डटे हुए धृतराष्ट्र सम्बन्धियो को देखकर, उस शस्त्र चलाने की तैयारी के समय धनुष उठाकरबोला (१९-२० श्लोक) अब आगे :

अर्जुन उवाच -


महीपत ! वो बोला ह्रषीकेश से,
कि ऐ लफ़ाना ! रथ बढ़ा दीजिये। 
चले वस्त में देखने औज - मौज,
इधर अपनी फ़ौज़ और उधर उन् की फ़ौज। २१। 

************************

मैं देखूं जरा वो जवां कौन हैं,
जरी कौन हैं ? पहलवा कौन हैं ?
लड़ाई को आये हैं जो बे - दरंग,
मुझ आज दरपेश हैं जिन से जंग। २२। 

************************

नज़र उन की सूरत पे कर लूँ जरा,
जो आये हैं मर्द-ए नबुर्द आज़मा। 
यह मकसद है जिन का कि हो उन से शाद,
वो धृतराष्ट्र का पिसर कुंज निहाद। २३। 

*************************

संजय उवाच 

गुडाकेश से जब हर्षिकेश ने,
सुना यह तो रथ को बढ़ाने लगे। 
था उस रथ का रुतबा रथो में बड़ा,
किया दोनों फ़ौज़ों में ला खड़ा। २४। 

*************************

द्रोण और भीष्म डटे थे वहां,
जमे थे वही राजमान - ए जहाँ। 
कहा - "अर्जुन ने देखा खड़े सफ़ ब - सफ़,
लड़ाई की ख़ातिर कुरु सर - बकफ़। २५। 

**************************

तब अर्जुन ने देखा खड़े हैं तमाम,
चचे, दादे, उस्ताद जी - एहतराम। 
कही बेटे, पोते, कही यार हैं,
बरादर हैं, मामू हैं, ग़मख़्वार हैं। २६। 

**************************

खुसर हैं कोई, कोई दिलबन्द हैं,
कि इक से लगा इक का पयोन्द है। 
जिगर की जिगर से लड़ाई है आज,
कि लड़ाई को भाई से भाई है आज। २७। 

*************************

अर्जुन उवाच -

हुआ दिल को अर्जुन के रंज - ओ मलाल,
कहा रहम - ओ रिक्कत से हो कर निढाल। 
महाराज ! यह क्या है दरपेश आज,
कि लड़ने को है खेश से खेश आज। २८। 

*************************

बदन में नही मेरे ताब - ओ तवां,
दहन खुश्क है सूखती है जबाँ। 
लगी है मुझे कंपकंपी थरथरी,
मेरे रोंगटे भी खड़े हैं सभी। २९। 

*************************

चला हाथ से मेरे गाण्डीव अब,
बदन जल रहा है मेरा सब का सब। 
यह लो पाओ भी लड़खड़ाने लगे,
मेरे सर को चक्कर से आने लगे। ३०। 

***************************


जय श्री कृष्ण !

प्यारे मित्रों ! ये ब्लॉग कैसा लगा आप को कमेंट करना न भूले।   कल मुलाकात होगी। आप के ह्रदय में कृष्ण भक्ति बनी रहे इसी के साथ आप सब को जय श्री कृष्ण आप का दिन मंगलमय हो। 
(Aap iss blog ko Facebook or tweeter account or Google+ par share kar saktai hain,krishan premiyo tak bhej saktai hai) 

नोट : कल भी पढ़ना न भुले लॉगिन करे https://kpgroup9security.blogspot.in





















कोई टिप्पणी नहीं: