शुक्रवार, 17 मार्च 2017

प्रथम अध्याय : "अर्जुनविषादयोग" (श्लोक संख्या - 31-40)

ॐ श्रीपरमात्मने नमः। 














"अर्जुनविषादयोग"
प्रथम अध्याय 

 जय श्री कृष्ण ! मेरे कृष्ण प्रेमी मित्रों ! अब तक आप ने पढ़ा २० वे श्लोक में कपिध्वज अर्जुन ने मोर्चा बाँधकर डटे हुए धृतराष्ट्र सम्बन्धियो को देखकर, उस शस्त्र चलाने की तैयारी के समय धनुष उठाकर अब आगे: ह्रषिकेश श्रीकृष्ण महाराज से यह वचन कहा : हे अच्युत ! मेरे रथ को दोनों सेनाओं के बीच में खड़ा कीजिये। (२१) और जब तक कि मैं युद्धक्षेत्र में डटे हुए युद्ध के अभिलाषी इन विपक्षी युद्धाओं को भली प्रकार देख न लूँ कि इस युद्धरूप व्यापार में मुझे किन-किन के साथ युद्ध करना योग्य है, तब तक उसे खड़ा रखिये। (२२) दुर्बुद्धि दुर्योधन का युद्ध में हित चाहनेवाले जो-जो ये राजा लोग इस सेना में आए है, इन युद्ध करनेवालों को मैं देखूगा। (२३) संजय बोले : हे धृतराष्ट्र ! अर्जुन द्वारा इस प्रकार कहे हुए महाराज श्रीकृष्णचन्द्र ने दोनों सेनाओं  के बीच में भीष्म और द्रोणाचार्य के सामने तथा सम्पूर्ण राजाओ के सामने उत्तम रथ को खड़ा करके इस प्रकार कहा कि हे पार्थ ! युद्ध के लिए जुटे हुए इन कौरवो को देख (२४ /२५ ) इस के बाद पृथापुत्र अर्जुन ने उन दोनों ही सेनाओं में स्थित ताऊ - चाचो को, दादों -परदादों को, गुरुओं को, मामाओं को, भाइयों को, पुत्रों को, पौत्रो को तथा मित्रों को, ससुरो को और सुह्र्दो को भी देखा। उन उपस्तिथ सम्पूर्ण बंधुओ को देखकर वे कुंतीपुत्र अर्जुन अत्यंत करुणा से युक्त होकर शोक करते हुए यह वचन बोले (२६,२७) अर्जुन बोले : हे कृष्ण ! युद्धक्षेत्र में डटे हुए युद्ध के अभिलाषी इस स्वजनसमुदाय को देखकर मेरे अंग शिथिल हुए जा रहे है और मुख सूखा जा रहा है तथा शरीर में कम्प एवं रोमांच हो रहा है। (२८, २९) हाथ में गांडीव धनुष गिर रहा है और त्वचा भी बहुत जल रही है तथा मेरा मन भ्रमित - सा हो रहा है, इस लिए मैं खड़ा रहने को भी समर्थ नही हूँ (३०) 
 अब आगे :

अर्जुन उवाच ↴

महाराज केशव ! मैं अब क्या कहूँ,
कि आसार बद हैं बुरे हैं शगू। 
यह कार-ए जबूं कर के क्या फ़ायदा,
अज़ीज़ों का खू करके क्या फ़ायदा। (३१ -श्लोक)

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मुझे ख़्वाहिश फतह - ओ नुसरत नही,
मुझे शोक ऐश - ओ हकूमत नही। 
कि गोविन्द ! ताज - ए शही हेच है,
खुशी हेच है, जिंदगी हेच है। (३२ -श्लोक)

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तमन्ना थी जिन के लिए राज की,
खुशी जिन से थी उशरत - ओ ताज की,
खड़े हैं वे तीर-ओ कमाँ जोड़ कर,
जऱ - ओ माल ओ-जाँ सब से मुँह मोड़ कर। ३३-श्लोक। 

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पिदर भी हैं दादे भी उस्ताद भी,
पिसर भी हैं अैर उन की औलाद भी। 
यह मामू, वो बीबी का भाई वो बाप,
सभी में क़राबत सभी में मिलाप। ३४- श्लोक। 


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मुझे कत्ल कर दें अगर बे-दरेग़,
न फिर भी उठाऊँगा अपनों पे तेग़। 
मधुमार ! क्या शय है दुनिया का राज,
न लूँ इस तरह तीनों आलम का बाज। ३५- श्लोक। 


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  फ़ना हों जो  धृतराष्ट्र के पिसर,
तो होगा खुशी का न दिल में गुज़र।
ये सफ्फाक गर हो भी जाये तबाह,
न छोड़ेगे पीछा हमारा गुनाह। ३६ श्लोक। 

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ये धृतराष्ट्र के जो फ़रज़न्द हैं,
ये माधो ! सब अपने जिगरबन्द हैं। 
अगर हम अज़ीज़ो को कर दें हलाक, 
रहेंगे सदा ग़म से अन्दोहनाक। ३७ - श्लोक। 

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समझ इन की हर चन्द गहना गई,
दिलों पर हवा-ओ हवस छा गई। 
न समझे वो यारों से लड़ना ख़ता,
न अहसास हो गर कबीले फ़ना। ३८ - श्लोक। 

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नही लेकिन ऐसे तो नादान हम,
बचे पाप से क्यों न भगवान हम। 
कि ज़ाहिर है गर ख़ानद़ाँ हो तबाह,
कहाँ इस से बढ़ कर है कोई गुनाह।३९ - श्लोक। 

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कबीला फ़नाह गर कोई हो गया,
कदीमी वो धर्म उस का सब खो गया। 
रहा धर्म पर जब न दार - ओ मदार,
अधर्म उस पे हो जाए अन्जामकार। ४० - श्लोक। 


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जय श्री कृष्ण !


प्यारे मित्रों ! इस ब्लॉग को आप इतना प्यार दे रहे है इस के लिए धन्यवाद आप सब का। आज का ये ब्लॉग कैसा लगा आप को कमेंट करना न भूले। कल मुलाकात होगी मित्रों । आप के ह्रदय में कृष्ण भक्ति सदैव बनी रहे इसी के साथ आप सब को जय श्री कृष्ण आप का दिन मंगलमय हो। आप भी अपनी राय मुझ तक कमेंट कर के पुहँचा सकते है। आप का अपना कृष्ण प्रेमी मित्र संजय भाटिया !

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