सोमवार, 20 मार्च 2017

दूसरा अघ्याय : सांख्ययोग (श्लोक संख्या - 1-10)

ॐ श्री परमात्मने नमः 


सांख्ययोग 
दूसरा अघ्याय

जय श्री कृष्ण मित्रों ! आप ने प्रथम अघ्याय में पढ़ा अर्जुन भगवान श्री कृष्ण जी से अपने उदासीन भावों को कहता है। अब आगे 

संजय उवाच -

जो अर्जुन का देखा यह रंज-ओ मलाल,
ग़म-ओ सोज़ दिल में तबीयत निढाल। 
नज़र दुःख से बेचैन आँखों में नम,
तो भगवान बोले जें -राह -ए करम। (१-श्लोक)

श्रीभगवानुवाच -

सुन अर्जुन ! यह कैसी रवश है रजील,
जो दोजक में डाले, जो कर दे जलील। 
कठिन वक्त में ऐसी क्यों बे - दिली,
न हो आर्यो में यूं बे-दिली। (२-श्लोक)

तू अर्जुन न बन हीज नामरद-ओ जार,
नहीं तेरे श्याने - शॉ जी की हार। 
यह कम हिम्मती छोड़ कर जी कड़ा,
अदू - सोज़ अर्जुन खड़ा हो खड़ा। (३-श्लोक)

अर्जुन उवाच -

वो बोला कि ऐ फ़ातिह - ए दुश्मना,
मधुमार ! मुझ से यह होगा कहाँ। 
मुअज़्ज़ज हैं भीष्म दरू हैं गुरु,
बहाऊँ मैं तीरों से इन का लहू।  (४-श्लोक)

गुरु मोहतरम का नहीं खू रवाँ,
गदाई में इस से तो जीना भला। 
मैं इन खैर - खवाहो का खू गर करूँ,
तो इशरत के लुकमे लहू से भरूँ। (५-श्लोक)

मैं क्या जांनू अच्छा है ऐ सर - परस्त,
शिकस्त उन को देना कि खाना शिकस्त। 
ये धर्तराष्ट्र के पिसर हैं तमाम,
उन्हें मार कर अपना जीना हराम। (६ - श्लोक)

तबीयत है कमज़ोर दिल नर्म है,
यह उलझन है अब क्या मेरा धर्म है ?
मैं चेला हूँ मेरी मदद कीजिये,
जो हो नेक रस्ता बता दीजिए (७-श्लोक)

जहाँ का मिले बे-ख़लल मुझ को राज,
मुझे देवता भी जो दें आके बाज। 
मैं उस हाल में भी रहूँगा उदास,
इसी दर्द से गुम है मेरे हवास। (८-श्लोक)

संजय उवाच -

गुडाकेश वो फ़ातिह - ए दुश्मना,
ह्रषिकेश से कर चुका जब बयां। 
तो यूं कह के चुप हो गया वो हजी,
"मैं गोविन्द लड़ता-लड़ाता नही" (९- श्लोक)

इधर फ़ौज थी और उधर फ़ौज थी,
दिल अर्जन का और ग़म की इक मौज थी। 
ह्रषिकेश कुछ मुस्कराने लगे,
ये उरफ़ॉ के मोती लुटाने लगे। (१०- श्लोक)



प्यारे मित्रों ! इस ब्लॉग को आप इतना प्यार दे रहे है इस के लिए धन्यवाद आप सब का। आज का ये ब्लॉग कैसा लगा आप को कमेंट करना न भूले। कल मुलाकात होगी मित्रों । आप के ह्रदय में कृष्ण भक्ति सदैव बनी रहे इसी के साथ आप सब को जय श्री कृष्ण आप का दिन मंगलमय हो। आप भी अपनी राय मुझ तक कमेंट कर के पुहँचा सकते है।

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