बुधवार, 22 मार्च 2017

दूसरा अघ्याय : सांख्ययोग (श्लोक संख्या - 21-30)

ॐ श्री परमात्मने नमः 




सांख्ययोग 
दूसरा अघ्याय


जय श्री कृष्ण मित्रों ! कल आप ने दूसरे अध्याय में पढ़ा संजय बोले : श्रीभगवान बोले : हे अर्जुन ! तू न शोक करने योग्य मनुष्यों के लिए शोक करता है और पण्डितो के जैसे वचनों को कहता है, परंतु जिनके प्राण चले गए है उनके लिये और जिनके प्राण नहीं गए है उनके लिये भी पण्डित जन शोक नही करते। (११) न तो ऐसा ही है कि मैं किसी काल में नही था, तू नही था अथवा ये राजा लोग नही थे और ना ऐसे ही है कि इससे आगे हम सब नही रहेगे। (१२) जैसे जीवात्मा की इस देह में बालकपन, जवानी और वृद्धावस्ता होती है, वैसे ही अन्य शरीर की प्राप्ति होती है, उस विषय में धीर पुरुष मोहित नही होता। (१३) हे कुंतीपुत्र ! सर्दी गर्मी और सुख-दुःख को देनेवाला इंन्द्रिय और विषयो के संयोग तो उत्पत्ति-विनाशशील और अनित्य है, इसलिए हे भारत ! उसको तू सहन कर। (१४) क्योंकि हे पुरुषश्रेष्ट दुःख-सुख को समान समझने वाले जिस धीर पुरुष को ये इन्द्रीयाँ और विषयो के संयोग व्याकुल नही करते, वह मोक्ष के योग्य होता है। (१५) असत वस्तु की तो सत्ता नही है और सत् का आभाव नही है इसप्रकार तत्वज्ञानी पुरुषो इन दोनों का ही तत्व देखा गया है। (१६) नाशरहित तो तू उसको जान, जिससे यह सम्पूर्ण जगत दृश्येवर्ग व्याप्त है।  इस अवनाशी का विनाश करने कोई भी समर्थ नही है। (१७) इस नाशरहित, अप्रमये, नित्यस्वरूप जीवात्मा के ये सब शरीर नाशवान कहे गए है।  इसलिए हे भरत वंशी अर्जुन ! तू युद्ध कर।  (१८) जो इस आत्मा को मारनेवाला समझता है तथा जो इसको मरा मानता है, वे दोनों ही नही जानते, क्योंकि यह आत्मा वास्तव में न तो किसी को मारता है और न किसीके द्वारा मारा जाता है।  (१९) यह आत्मा किसी काल में भी न तो जन्मता है और न मरता ही है तथा न यह उत्पन्न होकर फिर होनेवाला ही है क्योंकि यह अजन्मा, नित्य,सनातन और पुरातन है।  शरीर के मरे जाने पर भी यह नही मारा जाता है। (२०) अब आगे ---


श्रीभगवानुवाच -

जो समझे इसे दायम - ओ लाइजाल,
मुबर् रा  वलादत से और बे-ज़वाल। 
किसी का वो क्योंकर बहाएगा खून,
किसी का वो क्योंकर करेगा खून (२१-श्लोक)

बदलता है इंसाँ लिबास - ए कुहन,
नया जामा करता है फिर जेब - ए तन। 
इसी तरह कालब बदलती है रूह,
नये भेस में फिर निकलती है रूह।  (२२- श्लोक)

कटेगी न तलवार से आत्मा,
जलेगी कहाँ आग से आत्मा। 
न गीली हो पानी लगाने से यह,
न सूखे हवा में सूखने से यह। (२३-श्लोक)


न कट हे सके और न जल ही सके,
न सूखे न पानी से गल ही सके। 
कदीम और अटल भी है, दायम भी है ,
मूहित - ए जहाँ भी है कायम भी है। (२४-श्लोक)


नहीं आत्मा को  तग़य्युर जवाल,
हवास उस को पाये न पहुँचे ख़याल। 
तुझे आत्मा का जो यह ज्ञान है,
तो फिर किस लिये गम से हलकान है। (२५-श्लोक)


अगर तू समझता है यह आत्मा,
हो पैदा कभी और कभी हो फ़ना। 
तो फिर भी है लाज़म तुझे ओ कवी,
कि ग़म आत्मा का ना करना कभी। (२६-श्लोक)

जो पैदा हो मौत उस को आए जरा जरूर,
मरे तो जन्म फिर वो पाए जरूर। 
जो यह अमर लाज़म है और नागज़ीर,
तो फिर किस लिए है तू ग़म का असीर। (२७-श्लोक)


निगाहों से पहले निहाँ हो वजूद,
ये फिर बीच में कुछ ऐया हो वजूद। 
निहाँ फिर ये हो जाये इन्जाम-ए कार,
तू अर्जुन है फिर किस लिये बे-करार। (२८-श्लोक)


कोई आत्मा से तअज्जुब में आए,
कोई बात हैरत से उस की सुनाए। 
कोई जिक्र सुन-सुन के हैरान है,
मगर सुन-सुना कर भी अंजान है (२९-श्लोक)


जो है सब के तन में मकी आत्मा,
यह दायम है फ़ानी नहीं आत्मा। 
जो इस पर यकीं है तो भारत के लाल,
न कर एहल-ए हस्ती का रंज-ओ मलाल। (३०-श्लोक)



प्यारे मित्रों ! ये ब्लॉग कैसा लगा आप को कमेंट करना न भूले।   कल मुलाकात होगी। आप के ह्रदय में कृष्ण भक्ति बनी रहे इसी के साथ आप सब को जय श्री कृष्ण आप का दिन मंगलमय हो। 
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