उर्दू के प्रसिद्ध शायर ख्वाजा दिल मोहम्मद जी ने भी सरल उर्दू पद में श्री गीता जी का श्लोकशः अनुवाद किया है। वंदनीय सदगुरुदेव "स्वामी श्रीगीतानंद जी महाराज" के आशीर्वाद से ये छोटा सा प्रयास है हमारी तरफ से गीता जी का उर्दू पद्यानुवाद पर प्रकाश डालने की कोशिश की गई है। आशा है कि ये गीता प्रेमियो में दिव्य रस का संचार करता हुआ उन्हें आध्यात्मिक मंज़िलो तक ले जाएगा।
गुरुवार, 6 जुलाई 2017
आप जानते है भगवान विष्णु का योगनिद्रा काल : चातुर्मास कहलाता है (भाग - दूसरा)
जय श्रीकृष्ण मित्रों ! आप ने शयनी एकादशी के विषय में पढ़ा। देवशयनी एकादशी के साथ ही चातुर्मास शुरू हो जाता है। कल इस विषय के बारे में पढ़ा। आज आगे बढ़े इन चार महीनों के दौरान मनोरम माहौल और प्रफुल्लित चित्त के साथ प्रकृति के शांत वातावरण में ईश्वर की आराधना पर खासतौर से बल दिया गया है। व्यक्ति के किसी मांगलिक कार्यक्रमों में लिप्त नहीं होने से वह बाहरी जवाबदारियों से मुक्त होकर ईश्वर की भक्ति में ध्यान लगा सकता है। चातुर्मास के चार महीनों यानी सावन, भादौ, आश्विन और कार्तिक माह में खाने-पाने और व्रत व उपवास की सलाह दी गई है। चातुर्मास में व्यक्ति की पाचनशक्ति कमजोर पड़ जाती है, इसलिए इस संपूर्ण महीने में व्यक्ति को व्रत व उपवास करने की सलाह दी गई है। खासकर कि इस समय के दौरान पड़ने वाली तमाम एकादशियों में निर्जला उपवास किया जाता है। यदि सभी एकदशियों में निर्जल उपवास नहीं हो पाए तो कम से कम तीन एकादशी (देवशयनी, जलजिलनी और देव उठनी एकादशी) के दिन निर्जल उपवास जरुर करना चाहिए एेसा संतजनों का कहना है।
गुरु पूर्णिमा, हरियाली तीज, नागपंचमी, रक्षाबंधन, कृष्ण जन्माष्टमी, विजयदशमी, अहोई अष्टमी, करवा चौथ, दीपावली, भैया दूज, छठ पूजा और नदी स्नान के विशेष महत्व वाली कार्तिक पूर्णिमा ऐसे ही मौके हैं। चातुर्मास में 'पितृपक्ष' का पखवाड़ा और नवरात्र के नौ दिन ऐसे अवसर होते हैं, जब स्वास्थ्य और अध्यात्म दोनों की दृष्टि से आम गृहस्थ को विशेष निर्देश की जरूरत होती है।
गुरु पूर्णिमा का बड़ा महत्व गुरु का स्थान गोविंद से आगे यूं ही नहीं माना गया। चतुर्मास में भूलोक की पालना का भार गुरुवर्ग के भरोसे छोड़कर ही भगवान श्री विष्णु शयन करने पाताल लोक जाते हैं। इसीलिए गुरु भी इस चतुर्मास में कहीं नहीं जाते। शिष्यों को पूर्व सूचना के साथ पूर्व निर्धारित एक ही स्थान पर रहते हैं। इसीलिए चतुर्मास की पहली पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा कहा जाता है। शिष्य गुरु को साक्षात अपने सामने बिठाकर पूजा करते हैं। (गुरु पूर्णिमा का वर्णन अगले ब्लॉग में करुँगा)
आयुर्वेद की दृष्टि से चातुर्मास : आयुर्वेद की दृष्टि से भी उपवास के लिए यह समय उत्तम माना गया है। वजह यह है कि श्रावण के महीने में हरी सब्जियों में सूक्ष्म जंतुओं के होने की संभावनाए बहुत होने से अंकुरित चीजों को खाने की सलाह दी जाती है। भादों की बरसात के बाद जलवायु परिवर्तन की वजह से एकाएक गर्मी बढ़ जाती है। एेसे में यदि इंसान दही का सेवन करता है तो पित्त या अम्ल की समस्या का शिकार हो सकता है। इससे बचने के लिए दही को खाने के लिए वर्जित कहा गया है। इसके अलावा, इन आषाढ़ माह में दूध पीने से पानी से पैदा होने वाले रोग और कार्तिक माह में दाल को सेवन करने से अपच की समस्या हो सकती है, इसलिए इस दौरान इन आहार का सेवन करने की मनाही की गई है। चातुर्मास के दौरान श्रावण महीने में विविध त्यौहारों में उपवास के अलावा भादो में पितृ तर्पण और आषाढ़ में नवरात्रि की पूर्जा-अर्चना-अनुष्ठान और उपवास द्वारा धार्मिक और आध्यात्मिक संतुलन बनाने के साथ-साथ शारीरिक आरोग्यता की दिशा में भी हमारे शास्त्रों में विस्तारपूर्वक वर्णन किया गया है।
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