ॐ गं गणपतये नमः
जय श्रीकृष्ण मित्रों ! कल आप ने शयनी एकादशी के विषय में पढ़ा। देवशयनी एकादशी के साथ ही चातुर्मास शुरू हो जाता है। इस के साथ ही चार माह तक कोई मांगलिक कार्य नहीं होता। देवोत्थान एकादशी के साथ शुभ कार्यों की शुरुआत होगी। आषाढ़ शुक्ल एकादशी से भगवान विष्णु पाताल लोक में सोने चले जाते है। इस कारण इन चार माह में शुभ कार्यों को वर्जित माना गया है।
पुराणों में कहा गया है कि भगवान विष्णु आषाढ़ शुक्ल एकादशी से कार्तिक शुक्ल एकादशी तक चारमास पर्यन्त पाताल में राजा बली के यहाँ निवास करते हैं। आप ने विष्णु अवतार में भगवान वामन के अवतार के विषय को विस्तार से पढ़ा था।
भगवान् विष्णु का पन्द्रहवाँ अवतार : वामन अवतार

जब बाली रसातल में चला गया तब बलि ने अपनी भक्ति के बल से भगवान को रात-दिन अपने सामने रहने का वचन ले लिया और भगवान विष्णु को उनका द्वारपाल बनना पड़ा। भगवान के रसातल निवास से परेशान कि यदि स्वामी रसातल में द्वारपाल बन कर निवास करेंगे तो बैकुंठ लोक का क्या होगा? इस समस्या के समाधान के लिए लक्ष्मी जी को नारद जी ने एक उपाय सुझाया। लक्ष्मी जी ने राजा बलि के पास जाकर उसे रक्षाबन्धन बांधकर अपना भाई बनाया और उपहार स्वरुप अपने पति भगवान विष्णु को अपने साथ लेगयी तब से ऋषि मुनियों एवं देवताओं ने भगवान की पूजा एवं स्तुति की। राजा बलि ने भगवान विष्णु जी से चार मास तक पाताल लोक में रहने का आग्रह किया।
वर्षाकाल के चार महीने सावन, भादों, आश्विन और कार्तिक में सम्पन्न होने वाला उपवास का नाम है चातुर्मास।
चातुर्मास में व्रत के साथ-साथ कुछ नियमों का पालन करना चाहिए -
- चार मासों तक व्रती को कुछ खाद्य पदार्थ त्यागने चाहिए, इस संबंध में सिद्धांत यह है कि श्रावण मास में शाक, भाद्रपद में दही, आश्विन मास में दूध और कार्तिक मास में दालें ग्रहण नहीं करनी चाहिए।
- चातुर्मास्य का व्रत करने वाले को शय्या-शयन, मांस, मधु आदि का त्याग करना चाहिए। उसे जमीन पर शयन करना चाहिए, पूर्णतः शाकाहारी रहना चाहिए तथा मधु आदि रसदार वस्तुओं का सेवन नहीं करना चाहिए।
- गुड़, तेल, दूध, दही, बैंगन, शाकपत्र आदि का सेवन नहीं करना चाहिए। उक्त खाद्य पदार्थों के त्याग का शास्त्रों में निम्नलिखित फल कहे गए हैं -
- गुड़ त्याग से मधुर स्वर प्राप्त होता है।
- कड़वे तेल त्याग से शत्रु का नाश होता है।
- घृत त्याग से सौंदर्य मिलता है।
- शाक त्याग से बुद्धि एवं बहुपुत्र प्राप्त होते हैं।
- शाक एवं पत्रों के त्याग से पकवान की प्राप्ति होती है।
- दधि-दुग्ध त्याग से वंशवृद्धि होती है तथा व्रती गाओं के लोक में जाता है।
- चातुर्मास्य में जो व्यक्ति उपवास करते हुए नमक का त्याग करता है, उसके सभी कार्य सफल होते हैं।

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