
उर्दू के प्रसिद्ध शायर ख्वाजा दिल मोहम्मद जी ने भी सरल उर्दू पद में श्री गीता जी का श्लोकशः अनुवाद किया है। वंदनीय सदगुरुदेव "स्वामी श्रीगीतानंद जी महाराज" के आशीर्वाद से ये छोटा सा प्रयास है हमारी तरफ से गीता जी का उर्दू पद्यानुवाद पर प्रकाश डालने की कोशिश की गई है। आशा है कि ये गीता प्रेमियो में दिव्य रस का संचार करता हुआ उन्हें आध्यात्मिक मंज़िलो तक ले जाएगा।
शनिवार, 3 जून 2017
आप जानते है भगवान विष्णु का तेहरवां अवतार : मोहिनी अवतार
जय श्रीकृष्ण मित्रों ! आपने अब तक भगवान विष्णु के २४ अवतारों में १२ अवतारों का वर्णन विस्तार से पढ़ा। आज मित्रों भगवान विष्णु के ऐसे रूप का वर्णन जो है मोहिनी अवतार, जो नाम से मन को मुग्ध कर देने वाले भगवन विष्णु जी का अवतार :
धर्म ग्रंथों के अनुसार जैसे कल आपने पढ़ा कि समुद्र मंथन के दौरान सबसे अंत में धन्वन्तरि अमृत कलश लेकर निकले। जैसे ही अमृत मिला अनुशासन भंग हुआ। देवताओं ने कहा हम ले लें, दैत्यों ने कहा हम ले लें। इसी खींचातानी में इंद्र का पुत्र जयंत अमृत कुंभ लेकर भाग गया। सारे दैत्य व देवता भी उसके पीछे भागे। असुरों व देवताओं में भयंकर मार-काट मच गई। देवता परेशान होकर भगवान विष्णु के पास गए।भगवान ने कहा-मैं कुछ करता हूं। तब भगवान विष्णु ने मोहिनी अवतार लिया। देवता व असुर उसे ही देखने लगे। भगवान ने मोहिनी रूप में सबको मोहित कर दिया किया। दैत्यों की वृत्ति स्त्रियों को देखकर बदल जाती है। सभी उसके पास आसपास घूमने लगे। भगवान ने मोहिनी रूप में उन सबको मोहित किया। मोहिनी ने देवता व असुर की बात सुनी और कहा कि यह अमृत कलश मुझे दे दीजिए, तो मैं बारी-बारी से देवता व असुर को अमृत का पान करा दूंगी। दोनों मान गए। देवता एक तरफ तथा असुर दूसरी तरफ बैठ गए। देवता एक तरफ तथा असुर दूसरी तरफ बैठ गए। स्त्री अपने मोह में, रूप में क्या नहीं करा सकती पुरूष से।
जैसे दैत्यों ने अमृत कलश उनके हाथ में देखा, शीघ्रता से बलात उस कलश को छीन लिया। दैत्यों ने पहले से ही यह योजना बना रखी थी और वे इस कार्य में सफल हो गए। तदनंतर, सभी देवता श्री हरि से सहायता हेतु बिनती करने लगे, जिस पर उन्होंने उन्हें उनके कार्य को सिद्ध करने का आश्वासन दिया। उधर, दैत्यों में अमृत पान के लिये विवाद हो गया, उनमें तू-तू, मैं-मैं हो रही थीं।
मोहिनी देवी की परिहास भरी वाणी, दैत्यों को और अधिक आश्वस्त कर गई और उन्होंने अमृत से भरा कलश उनके हाथों में दे दिया। मोहिनी देवी ने अमृत का कलश अपने हाथ में ले, दैत्यों से कहा! मैं जो भी करूँ, फिर चाहें वो उचित हो या अनुचित, अगर तुम्हें स्वीकार हो तो तुम्हें अमृत बाट सकती हूँ। उनकी मोहयुक्त मीठी बात सुनकर, सभी दैत्य देवी मोहिनी के प्रस्ताव पर सहमत हो गए। मोहिनी देवी ने अगले दिन अमृत पान करने की सलाह दी, उनके आदेशानुसार अगले दिन समस्त दैत्य स्नान कर अमृत पान करने हेतु पंक्ति में बैठे, देवता भी वहाँ आ कर बैठ गए। देवताओं के वहाँ आकर बैठने पर, मोहिनी देवी राजा बलि से बोलीं! "इन्हें आप लोग अपने अतिथि समझें, ये धर्म को ही सर्वस्व मान कर उस का साधन करने वाले हैं। इनके लिये यथा शक्ति दान देना चाहिये, जो लोग अपनी शक्ति के अनुसार दूसरों का उपकार करते हैं, उन्हें ही धन्य मानना चाहिये, वे ही सम्पूर्ण जगत के रक्षक तथा परम पवित्र हैं, जो केवल अपना पेट भरने के लिये उद्योग करते हैं, वे क्लेश के भागी होते हैं।" मोहिनी देवी के इस प्रकार कहने पर, असुरों के देवताओं को भी अमृत पान करने हेतु आमंत्रित किया। तदनंतर मोहिनी देवी ने कहा! वेद कहते हैं कि सबसे पहले अतिथियों का सत्कार होना चाहिये, महाराज बलि अप स्वयं ही कहे की मैं पहले किसको अमृत पान कराऊँ? बलि ने उत्तर दिया! देवी आपकी जैसे रुचि हो।
भगवान विष्णु के अवतार मोहिनी रूप को देख कर, कामदेव को भस्म करने वाले शिव का मोहित हो जाना
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