बुधवार, 7 जून 2017

आप जानते है भगवान् विष्णु का सोलहवाँ अवतार : हयग्रीव अवतार

ॐ गं गणपतये नमः 

 भगवान् विष्णु का सोलहवाँ अवतार : हयग्रीव अवतार 


जय श्रीकृष्ण मित्रों ! आपने अब तक भगवान विष्णु के २४ अवतारों में १५ अवतारों का वर्णन विस्तार से  पढ़ा। 





1- श्री सनकादि मुनि, 2- वराह अवतार, 3- नारद अवतार, 4- नर-नारायण, 5- कपिल मुनि, 6- दत्तात्रेय अवतार, 7-  यज्ञ, 8- भगवान ऋषभदेव,  9- आदिराज पृथु, 10- मत्स्य अवतार,  11- कूर्म अवतार 12- भगवान धन्वन्तरि 13- मोहिनी अवतार  14- नरसिंह अवतार 15- वामन अवतार 



धर्म ग्रंथों के अनुसार एक बार मधु और कैटभ नाम के दो शक्तिशाली राक्षस ब्रह्माजी से वेदों का हरण कर रसातल में पहुंच गए। वेदों का हरण हो जाने से ब्रह्माजी बहुत दु:खी हुए और भगवान और भगवान विष्णु के पास पहुंचे। तब भगवान ने हयग्रीव अवतार लिया। इस अवतार में भगवान विष्णु की गर्दन और मुख घोड़े के समान थी। तब भगवान हयग्रीव रसातल में पहुंचे और मधु-कैटभ का वध कर वेद पुन: भगवान ब्रह्मा को दे दिए।  




एक समय की बात है क‌ि भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी बैकुण्ठ में विराजमान थे। उस समय देवी लक्ष्मी के सुंदर रूप को देखकर भगवान विष्णु मुस्कुराने लगे। देवी लक्ष्मी को ऐसा लगा कि विष्णु भगवान उनके सौन्दर्य की हंसी उड़ा रहे हैं। देवी ने इसे अपना अपमान समझ लिया और ब‌िना सोचे भगवान विष्णु को शाप दे दिया कि आपका सिर धड़ से अलग हो जाए।

शाप का परिणाम यह हुआ कि एक बार भगवान विष्णु युद्ध करते हुए बहुत थक गए तो धनुष की प्रत्यंचा चढ़ाकर उसे धरती पर टिका दिया और उस पर सिर लगाकर सो गए। कुछ समय बाद जब देवाताओं ने यज्ञ का आयोजन किया तो भगवान विष्णु को निद्रा से जगाने के लिए धनुष की प्रत्यंचा कटवा दिया। प्रत्यंचा कटते ही उसने भगवान विष्णु के गर्दन पर प्रहार हुआ और भगवान का सिर धड़ से अलग हो गया।


इसके बाद आदिशक्ति का देवताओं ने आह्वान किया। देवी ने बताया कि आप भगवान विष्णु के धड़ में घोड़े का सिर लगवा दें। देवताओं ने विश्वकर्मा के सहयोग से भगवान विष्णु के धड़ में घोड़े का सिर जोड़ दिया और यह अवतार हयग्रीव अवतार कहलाया।


इस अवतार में भगवान विष्णु ने हयग्रीव नाम के ही एक दैत्य का वध किया जिसे देवी से यह वरदान प्राप्त हुआ था कि उसकी मृत्यु केवल उसी व्यक्ति के हाथों से हो सकती है जिसका सिर घोड़े का हो और शरीर मनुष्य का। इस तरह भगवान विष्णु का यह अवतार लेना सफल हुआ। भगवान व‌िष्‍णु ने इस अवतार को लेकर हयग्रीव से वेदों को वापस लेकर ब्रह्मा जी को सौंपा।





कोई टिप्पणी नहीं: