ॐ श्रीपरमात्मने नमः
मोक्षसंन्यासयोग
अठारहवाँ अध्याय
जय श्री कृष्ण मित्रों ! आपने अठारहवे अध्याय के ४५ श्लोक में अपने अपने स्वाभाविक कर्मों में तत्परता से लगा हुआ मनुष्य भगवत्प्राप्तिरूप परम सिद्धि को प्राप्त हो जाता है। अपने स्वाभाविक कर्म में लगा हुआ मनुष्य जिस प्रकार से कर्म करके परमसिद्धि को प्राप्त होता है, उस विधि को तू सुन। अब आगे --
श्रीभगवानुवाच --
वही ज़ात जिस से खुदाई हुई,
जो सारे जहाँ पर छाई हुई।
उसी की परस्तिश हैं तामील फ़र्ज,
है तकमील इन्सां की तकमील फ़र्ज। (४६)
नहीं मन्सबी धर्म तेरा अगर,
जो खूबी से गर कर सके तो न कर।
जो है धर्म तेरा वो कर काम आप,
बुरा हो, भला हो, नहीं उस में पाप। (४७)
जो तबई है धर्म उस की तामील कर,
जो नाकिस भी हो उस की तकमील कर।
कि कामों में अर्जुन ज़िया साथ है,
जहाँ भी है आतिश धुआँ साथ है। (४८)
जो कामों से मन को लगावट नहीं,
हवस तर्क हो नफ़्स ज़ेरेनगीं।
तो इस तर्क से पाये रुतबा बुलन्द,
न कर्मों की बाकी रहे क़ैद-ओ बन्द। (४९)
सुन सब मुख़तसिर मुझ से कुन्ती के लाल,
कि हासिल जो करता है औज़-ए कमाल।
वो फिर ब्रह्म से जा के वासिल हो कब,
यह आला-तरी ज्ञान हासिल हो कब। (५०)
हो काबू जिसे नफ़स पर मुस्तकिल,
करे पाक दानिश में सरशार दिल।
न आवाज़-ओ महसूस अशिया से काम,
वो रग़बत से नफ़रत से बाला मुदाम। (५१)
जो खाता हो कम और हो खिलवतनशी,
हों तन, मन, ज़बाँ जिस के ज़ेरेनगीं।
रहे ध्यान और योग में मुस्तकिल,
हमेशा हो विराग में उस का दिल। (५२)
अंहकार उस में न बल का ग़रूर,
तकब्बर ग़ज़ब हिर्स-ओ शाहवत से दूर।
खुदी से बरी जिस के दिल में सकूँ,
वोही ब्रह्म का वस्ल पाये न क्यों। (५३)
हो जब वासिल-ए ब्रह्म दिलशाद हो,
ग़म-ओ रंज-ओ उलफत से आज़ाद हो।
जो समझे हैं मख़लूक़ यकसाँ सभी,
नसीब उस को भक्ति हो आला मेरी। (५४)
वो भक्ति से मेरी मुझे जान ले,
कि मैं कौन हूँ क्या हूँ पहचान ले।
मेरा ज्ञान जब उस को हासिल हुआ,
मेरी ज़ात -ए आली में वासिल हुआ। (५५)
करे जिस कदर उस पे लाज़म है काम,
मगर आसरा मुझ पे रक्खे मुदाम।
वो रहमत में मेरी समा जायेगा,
मुकाम ऐ बका को वो पा जायेगा। (५६)
तू मुझ पर सभी काम संन्यास कर,
उन्हें छोड़ दिल से मेरी आस कर।
तू ले अक्ल के योग का आसरा,
ख़यालात अपने मुझी में लगा। (४७)
अगर मुझ को मन में लगायेगा तू,
तो हर रोग से पार जायेगा तू।
सुनेगा न मेरी अहंकार से,
तबाही में जायेगा पिन्दार से। (५८)
यह कहना तेरा खुद अहंकार है,
कि मुझ को लड़ाई से इन्कार है।
यह सब अज़्म काफ़ूर हो जायेगा,
तू फ़ितरत से मज़बूर हो जायेगा। (५९)
बनाया है जो तेरी फ़ितरत ने धर्म,
करायेगी फ़ितरत वही तुझ से कर्म।
तुझे लाख रोके फ़रेब-ए ख़याल,
करेगा तू लाचार कुन्ती के लाल। (६०)
सुन अर्जुन ख़ुदा है ख़ुदा हर कहीं,
ख़ुदाई के दिल में ख़ुदा है मकीं।
वो सब हस्तियों को घुमाता रहे,
वो माया चक्कर चलाता रहे। (६१)
तू जा-ए पनाह उसी को बना,
उसी ज़ात में अपनी हस्ती लगा।
तू रहमत में उस की समा जायेगा,
सकूँ-ओ बका उस से पा जायेगा। (६२)
बताया तुझे मैंने ऐ पाकबाज़,
यह ज्ञानों का ज्ञान और राज़ो का राज़।
तवज़्ज़ो से इस राज़ पर गौर कर,
अमल इस पे तू चाहे जिस तौर कर। (६३)
सुन अब सर-ए पन्हा की इक और बात,
बड़े राज की काबल-ए ग़ौर बात।
कि अर्जुन तू प्यारा है महबूब है,
तेरा फ़ायदा मुझ को मतलूब है। (६४)
लगा मुझ में दिल भक्त हो जा मेरा,
तू कर यज्ञ मेरे सामने सर झुका।
मुझे तुझ से मुझ से तुझे प्यार है,
मेरा वस्ल का तुझ से इकरार है। (६५)
तू सब धर्म छोड़ और ले मेरी राह,
तू मांग आ के दामन में मेरे पनाह।
तेरे पाप सब दूर कर दूँगा मैं,
न ग़मगीं हो मसरूर कर दूँगा मैं। (६६)
यह राज़ उस से मत कह जो जाहिद न हो,
यह राज़ उस से मत कह जो आबिद न हो।
न उस से जो हो बद-ज़बाँ नुक्ता-चीं,
न उस से जो सुनने का ख़्वाहाँ नहीं। (६७)
मेरा भक्त होकर बा-इज़्ज़-ओ न्याज़,
जो भक्तों से मेरे कहेगा यह राज़।
उन्हें सर-ए आली सिखा जायेगा,
वो बेशक मेरा वस्ल पा जायेगा। (६८)
कहाँ उस से बढ़ कर है इन्सां कोई,
करे ऐसी प्यारी जो सेवा मेरी।
मुरव्वत की आंखो का तारा है वो,
मुझे सारी दुनिया से प्यारा है वो। (६९)
पढ़ेगा जो कोई बरा-ए सबाब,
हमारे मुकद्दस सवाल-ओ जवाब।
मैं समझुंगा उस ने दिया ज्ञानयज्ञ,
इबादत में मेरी किया ज्ञानयज्ञ। (७०)
फ़कत जो सुने रख के दिल में यकीं,
निकाले न ऐब और न हो नुक्ता-चीं।
गुनाहों से वो मुख़लसी पायेगा,
कि नेकों की दुनिया में आ जायेगा। (७१)
सुना तूने अर्जुन यह मेरा कलाम,
सुना तबा-यक्सू से तूने तमाम।
बता तेरे दिल से धनञ्जय कहीं,
फ़रेब-ए जहालत गया या नहीं ?। (७२)
अर्जुन उवाच --
पुकारा फिर अर्जुन कि ऐ लाइज़ाल,
हुआ दूर शक और फ़रेब-ए ख़्याल।
पता चल गया दिल है मज़बूत अब,
बजा लाऊंगा आप के हुक्म सब। (७३)
संजय उवाच --
सुना मैंने श्रीकृष्ण ने जो कहा,
जो अर्जुन महा-आत्मा ने सुना।
अजब हैरत-अंग्रेज़ थी गुफ़्तगू ,
खड़े हैं मेरे रौंगटे मू-बमू। (७४)
सुना व्यास जी की दया से तमाम,
यह श्रीकृष्ण योगेश्वर का कलाम।
खुद उन के लबों से सुना है सभी,
यही योग आली यह सर-ए ख़फी। (७५)
जो केशव से अर्जुन हुए हम-कलाम,
अजब गुफ़्तगू है मुक६स तमाम।
उसे याद करता हूँ मैं बार-बार,
तो दिलशाद करता हूँ मैं बार-बार। (७६)
हरि की हुई दीद मुझ को नसीब,
मेरे सामने है वो सूरत अजीब।
उसे याद करता हूँ मैं बार-बार,
तो दिलशाद करता हूँ मैं बार-बार। (७७)
जिधर हैं कृष्ण मेहरबाँ योगेश्वर है खुद जहाँ,
जिधर हैं साहिब-ए कमाँ वो अर्जुन जैसा पहलवाँ।
वहीं हैं शादकामियाँ वहीं हैं खुश इन्तजामियाँ,
वहीं हैं कामरानियाँ, वहीं हैं शादमानियाँ। (७८)
श्रीभगवानुवाच --
वही ज़ात जिस से खुदाई हुई,
जो सारे जहाँ पर छाई हुई।
उसी की परस्तिश हैं तामील फ़र्ज,
है तकमील इन्सां की तकमील फ़र्ज। (४६)
नहीं मन्सबी धर्म तेरा अगर,
जो खूबी से गर कर सके तो न कर।
जो है धर्म तेरा वो कर काम आप,
बुरा हो, भला हो, नहीं उस में पाप। (४७)
जो तबई है धर्म उस की तामील कर,
जो नाकिस भी हो उस की तकमील कर।
कि कामों में अर्जुन ज़िया साथ है,
जहाँ भी है आतिश धुआँ साथ है। (४८)
जो कामों से मन को लगावट नहीं,
हवस तर्क हो नफ़्स ज़ेरेनगीं।
तो इस तर्क से पाये रुतबा बुलन्द,
न कर्मों की बाकी रहे क़ैद-ओ बन्द। (४९)
सुन सब मुख़तसिर मुझ से कुन्ती के लाल,
कि हासिल जो करता है औज़-ए कमाल।
वो फिर ब्रह्म से जा के वासिल हो कब,
यह आला-तरी ज्ञान हासिल हो कब। (५०)
हो काबू जिसे नफ़स पर मुस्तकिल,
करे पाक दानिश में सरशार दिल।
न आवाज़-ओ महसूस अशिया से काम,
वो रग़बत से नफ़रत से बाला मुदाम। (५१)
जो खाता हो कम और हो खिलवतनशी,
हों तन, मन, ज़बाँ जिस के ज़ेरेनगीं।
रहे ध्यान और योग में मुस्तकिल,
हमेशा हो विराग में उस का दिल। (५२)
अंहकार उस में न बल का ग़रूर,
तकब्बर ग़ज़ब हिर्स-ओ शाहवत से दूर।
खुदी से बरी जिस के दिल में सकूँ,
वोही ब्रह्म का वस्ल पाये न क्यों। (५३)
हो जब वासिल-ए ब्रह्म दिलशाद हो,
ग़म-ओ रंज-ओ उलफत से आज़ाद हो।
जो समझे हैं मख़लूक़ यकसाँ सभी,
नसीब उस को भक्ति हो आला मेरी। (५४)
वो भक्ति से मेरी मुझे जान ले,
कि मैं कौन हूँ क्या हूँ पहचान ले।
मेरा ज्ञान जब उस को हासिल हुआ,
मेरी ज़ात -ए आली में वासिल हुआ। (५५)
करे जिस कदर उस पे लाज़म है काम,
मगर आसरा मुझ पे रक्खे मुदाम।
वो रहमत में मेरी समा जायेगा,
मुकाम ऐ बका को वो पा जायेगा। (५६)
तू मुझ पर सभी काम संन्यास कर,
उन्हें छोड़ दिल से मेरी आस कर।
तू ले अक्ल के योग का आसरा,
ख़यालात अपने मुझी में लगा। (४७)
अगर मुझ को मन में लगायेगा तू,
तो हर रोग से पार जायेगा तू।
सुनेगा न मेरी अहंकार से,
तबाही में जायेगा पिन्दार से। (५८)
यह कहना तेरा खुद अहंकार है,
कि मुझ को लड़ाई से इन्कार है।
यह सब अज़्म काफ़ूर हो जायेगा,
तू फ़ितरत से मज़बूर हो जायेगा। (५९)
बनाया है जो तेरी फ़ितरत ने धर्म,
करायेगी फ़ितरत वही तुझ से कर्म।
तुझे लाख रोके फ़रेब-ए ख़याल,
करेगा तू लाचार कुन्ती के लाल। (६०)
सुन अर्जुन ख़ुदा है ख़ुदा हर कहीं,
ख़ुदाई के दिल में ख़ुदा है मकीं।
वो सब हस्तियों को घुमाता रहे,
वो माया चक्कर चलाता रहे। (६१)
तू जा-ए पनाह उसी को बना,
उसी ज़ात में अपनी हस्ती लगा।
तू रहमत में उस की समा जायेगा,
सकूँ-ओ बका उस से पा जायेगा। (६२)
बताया तुझे मैंने ऐ पाकबाज़,
यह ज्ञानों का ज्ञान और राज़ो का राज़।
तवज़्ज़ो से इस राज़ पर गौर कर,
अमल इस पे तू चाहे जिस तौर कर। (६३)
सुन अब सर-ए पन्हा की इक और बात,
बड़े राज की काबल-ए ग़ौर बात।
कि अर्जुन तू प्यारा है महबूब है,
तेरा फ़ायदा मुझ को मतलूब है। (६४)
लगा मुझ में दिल भक्त हो जा मेरा,
तू कर यज्ञ मेरे सामने सर झुका।
मुझे तुझ से मुझ से तुझे प्यार है,
मेरा वस्ल का तुझ से इकरार है। (६५)
तू सब धर्म छोड़ और ले मेरी राह,
तू मांग आ के दामन में मेरे पनाह।
तेरे पाप सब दूर कर दूँगा मैं,
न ग़मगीं हो मसरूर कर दूँगा मैं। (६६)
यह राज़ उस से मत कह जो जाहिद न हो,
यह राज़ उस से मत कह जो आबिद न हो।
न उस से जो हो बद-ज़बाँ नुक्ता-चीं,
न उस से जो सुनने का ख़्वाहाँ नहीं। (६७)
मेरा भक्त होकर बा-इज़्ज़-ओ न्याज़,
जो भक्तों से मेरे कहेगा यह राज़।
उन्हें सर-ए आली सिखा जायेगा,
वो बेशक मेरा वस्ल पा जायेगा। (६८)
कहाँ उस से बढ़ कर है इन्सां कोई,
करे ऐसी प्यारी जो सेवा मेरी।
मुरव्वत की आंखो का तारा है वो,
मुझे सारी दुनिया से प्यारा है वो। (६९)
पढ़ेगा जो कोई बरा-ए सबाब,
हमारे मुकद्दस सवाल-ओ जवाब।
मैं समझुंगा उस ने दिया ज्ञानयज्ञ,
इबादत में मेरी किया ज्ञानयज्ञ। (७०)
फ़कत जो सुने रख के दिल में यकीं,
निकाले न ऐब और न हो नुक्ता-चीं।
गुनाहों से वो मुख़लसी पायेगा,
कि नेकों की दुनिया में आ जायेगा। (७१)
सुना तूने अर्जुन यह मेरा कलाम,
सुना तबा-यक्सू से तूने तमाम।
बता तेरे दिल से धनञ्जय कहीं,
फ़रेब-ए जहालत गया या नहीं ?। (७२)
अर्जुन उवाच --
पुकारा फिर अर्जुन कि ऐ लाइज़ाल,
हुआ दूर शक और फ़रेब-ए ख़्याल।
पता चल गया दिल है मज़बूत अब,
बजा लाऊंगा आप के हुक्म सब। (७३)
संजय उवाच --
सुना मैंने श्रीकृष्ण ने जो कहा,
जो अर्जुन महा-आत्मा ने सुना।
अजब हैरत-अंग्रेज़ थी गुफ़्तगू ,
खड़े हैं मेरे रौंगटे मू-बमू। (७४)
सुना व्यास जी की दया से तमाम,
यह श्रीकृष्ण योगेश्वर का कलाम।
खुद उन के लबों से सुना है सभी,
यही योग आली यह सर-ए ख़फी। (७५)
जो केशव से अर्जुन हुए हम-कलाम,
अजब गुफ़्तगू है मुक६स तमाम।
उसे याद करता हूँ मैं बार-बार,
तो दिलशाद करता हूँ मैं बार-बार। (७६)
हरि की हुई दीद मुझ को नसीब,
मेरे सामने है वो सूरत अजीब।
उसे याद करता हूँ मैं बार-बार,
तो दिलशाद करता हूँ मैं बार-बार। (७७)
जिधर हैं कृष्ण मेहरबाँ योगेश्वर है खुद जहाँ,
जिधर हैं साहिब-ए कमाँ वो अर्जुन जैसा पहलवाँ।
वहीं हैं शादकामियाँ वहीं हैं खुश इन्तजामियाँ,
वहीं हैं कामरानियाँ, वहीं हैं शादमानियाँ। (७८)
(अठारहवाँ अध्याय समाप्त हुआ)
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