गुरुवार, 18 मई 2017

भारतीय (भारत की) संस्कृति


भारतीय (भारत की) संस्कृति 
जय श्री कृष्ण मित्रों ! आप ने अब तक पुराणों, वेद, उपनिषद से सम्बन्धित पढ़ा, ये छोटी से कोशिश थी जबकि ये अथाह समुद्र है। कितने वेद पुराण काल के गर्त में खो गए। भारत में विदेशियों के आक्रमणों के कारण भी इन को नष्ट कर दिया गया। हम अपनी संस्कृति को धीरे धीरे भूलते जा रहे है। चलिए आज संस्कृति से सम्बंधित कुछ जानकारी देना चाहूंगा आप को :
भारत की संस्कृति 
चार युग - सतयुग , त्रेता युग , द्वापरयुग एवं कलयुग। 
दो पक्ष - कृष्ण पक्ष एवं शुक्ल पक्ष। 
तीन ऋण - देव ऋण, पित्र ऋण एवं ऋषि त्रण। 

चार धाम - द्वारिका , बद्रीनाथ, जगन्नाथ पूरी एवं रामेश्वरम धाम। 

चारपीठ -
शारदा पीठ ( द्वारिका ), ज्योतिष पीठ ( जोशीमठ बद्रिधाम), गोवर्धनपीठ ( जगन्नाथपुरी ) एवं श्रन्गेरिपीठ 

चार वेद- ऋग्वेद , अथर्वेद, यजुर्वेद एवं सामवेद। 

चार आश्रम - ब्रह्मचर्य , गृहस्थ , बानप्रस्थ एवं संन्यास। 

चार अंतःकरण - मन , बुद्धि , चित्त , एवं अहंकार। 

पञ्च गव्य - गाय का घी , दूध, दही , गोमूत्र एवं गोबर। 

पञ्च देव - गणेश , विष्णु , शिव , देवी और सूर्य। 

पंच तत्त्व - प्रथ्वी , जल , अग्नि , वायु एवं आकाश। 

छह दर्शन - वैशेषिक , न्याय, सांख्य, योग , पूर्व मिसांसा एवं दक्षिण मिसांसा। 

सप्त ऋषि - विश्वामित्र , जमदाग्नि , भरद्वाज , गौतम , अत्री , वशिष्ठ और कश्यप। 

सप्त पूरी - अयोध्या पूरी , मथुरा पूरी , माया पूरी ( हरिद्वार ) , कशी , कांची ( शिन कांची - विष्णु कांची ), अवंतिका और द्वारिका पूरी। 

आठ योग - यम , नियम, आसन , प्राणायाम , प्रत्याहार , धारणा , ध्यान एवं समाधी। 

आठ लक्ष्मी - आग्घ , विद्या, सौभाग्य , अमृत , काम , सत्य, भोग , एवं योग लक्ष्मी। 

नव दुर्गा - शैल पुत्री , ब्रह्मचारिणी , चंद्रघंटा ,कुष्मांडा , स्कंदमाता , कात्यायिनी , कालरात्रि , महागौरी एवं सिद्धिदात्री। 

दस दिशाएं - पूर्व , पश्चिम, उत्तर , दक्षिण , इशान , नेत्रत्य , वायव्य आग्नेय,आकाश एवं पाताल। 

मुख्या ग्यारह अवतार - मत्स्य , कच्छप , बराह , नरसिंह , बामन , परशुराम , श्री राम , कृष्ण , बलराम , बुद्ध , एवं कल्कि। 

बारह मास - चेत्र , वैशाख , ज्येष्ठ ,अषाड़ , श्रावन , भाद्रपद , अश्विन , कार्तिक, मार्गशीर्ष . पौष , माघ , फागुन। 

बारह राशि  - मेष , ब्रषभ , मिथुन , कर्क , सिंह , तुला , ब्रश्चिक , धनु , मकर , कुम्भ, एवं कन्या। 

बारह ज्योतिर्लिंग - सोमनाथ , मल्लिकर्जुना , महाकाल , ओमकालेश्वर , बैजनाथ , रामेश्वरम , विश्वनाथ , त्रियम्वाकेश्वर ­ , केदारनाथ , घुष्नेश्वर , भीमाशंकर एवं नागेश्वर। 

पंद्रह तिथियाँ - प्रतिपदा, द्वतीय , तृतीय , चतुर्थी , पंचमी , षष्ठी , सप्तमी , अष्टमी , नवमी , दशमी , एकादशी , द्वादशी , त्रयोदशी , चतुर्दशी , पूर्णिमा , अमावस्या  

स्म्रतियां - मनु , विष्णु, अत्री , हारीत , याज्ञवल्क्य , उशना , अंगीरा , यम , आपस्तम्ब , सर्वत , कात्यायन, बृहस्पति , पराशर , व्यास , शांख्य , लिखित , दक्ष , शातातप , वशिष्ठ। 

चलिए मित्रों थोड़ा और आगे चले : महर्षि व्यास जी के अनुसार सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग, कलयुग ये चार युग हैं, जो देवताओ के बारह हज़ार दिव्य वर्षो के बराबर होते हैंI समस्त चतुर्युग एक से ही होते हैंI आरम्भ सत्ययुग से होता है अंत में कलयुग होता हैI किसी भी जन्म में अपनी आज़ादी से किये गये कर्मों के मुताबिक आत्मा अगला शरीर धारण करती है। हिन्दू धर्म के सर्वोच्च ग्रन्थ हैं, जो पूर्णत: अपरिवर्तनीय हैं, अर्थात् किसी भी युग में इनमे कोई बदलाव नही किया जा सकता। ब्रह्माजी क्रत्युग में जिस प्रकार सृष्टि का आरम्भ करते हैं, वैसे ही कलयुग में उसका उपसंहार करते हैंI सतयुग, द्वापरयुग, कलयुग हर युग में कोई न कोई भगवन जन्म जरूर लेते है ऐसा सभी लोगों का मानना है, लेकिन क्या आप जानते है कि किस युग में इंसान कितने जन्म लेता है। इसलिए आइए जानें चारों युगों के बारे में कुछ ऐसी बातें जो कभी नहीं सुना होगा। मित्रों इस विषय में कल बात होगी। इसलिए पढ़ना न भूले। 

कोई टिप्पणी नहीं: