बुधवार, 24 मई 2017

नारद अवतार - भगवान विष्णु का तीसरा अवतार

ॐ गं गणपतये नमः 

जय श्रीकृष्ण मित्रों ! आपने अब तक भगवान विष्णु के २४ अवतारों में १० अवतारों का वर्णन पढ़ा।
1- श्री सनकादि मुनि, 2- वराह अवतार, 3- नारद अवतार, 4- नर-नारायण, 5- कपिल मुनि, 6- दत्तात्रेय अवतार, 7-  यज्ञ, 8- भगवान ऋषभदेव, 9- आदिराज पृथु, 10- मत्स्य अवतार  
पिछले ब्लॉग में आप ने श्री सनकादि मुनि और वराह अवतार के विषय में पढ़ा अब आगे 
३- नारद अवतार : श्रीमद्भागवत महापुराणका कथन है, सृष्टि में भगवान ने देवर्षि नारद के रूप में तीसरा अवतार ग्रहण किया और सात्वततंत्र का उपदेश दिया जिसमें सत्कर्मो के द्वारा भव-बंधन से मुक्ति का मार्ग दिखाया गया है।नारद ब्रह्मा के सात मानस पुत्रो मे से एक है। उन्होने कठिन तपस्या से ब्रह्मर्षि पद प्राप्त किया है। देवर्षि नारद धर्म के प्रचार तथा लोक-कल्याण हेतु सदैव प्रयत्नशील रहते हैं। शास्त्रों में इन्हें भगवान का मन कहा गया है। इसी कारण सभी युगों में, सब लोकों में, समस्त विद्याओं में, समाज के सभी वर्गो में नारदजी का सदा से प्रवेश रहा है। मात्र देवताओं ने ही नहीं, वरन् दानवों ने भी उन्हें सदैव आदर दिया है। समय-समय पर सभी ने उनसे परामर्श लिया है। 
श्रीमद्भगवद्गीता के दशम अध्याय के २६वें श्लोक में स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने इनकी महत्ता को स्वीकार करते हुए कहा है - ''देवर्षीणाम्चनारद:।.'' अर्थात देवर्षियों में मैं नारद हूं। महाभारत के सभापर्व के पांचवें अध्याय में नारदजी के व्यक्तित्व का परिचय इस प्रकार दिया गया है - देवर्षि नारद वेद और उपनिषदों के मर्मज्ञ, देवताओं के पूज्य, इतिहास-पुराणों के विशेषज्ञ, पूर्व कल्पों (अतीत) की बातों को जानने वाले, न्याय एवं धर्म के तत्त्‍‌वज्ञ, शिक्षा, व्याकरण, आयुर्वेद, ज्योतिष के प्रकाण्ड विद्वान, संगीत-विशारद, प्रभावशाली वक्ता, मेधावी, नीतिज्ञ, कवि, महापण्डित, बृहस्पति जैसे महाविद्वानोंकी शंकाओं का समाधान करने वाले, धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष के यथार्थ के ज्ञाता, योगबलसे समस्त लोकों के समाचार जान सकने में समर्थ, सांख्य एवं योग के सम्पूर्ण रहस्य को जानने वाले, देवताओं-दैत्यों को वैराग्य के उपदेशक, क‌र्त्तव्य-अक‌र्त्तव्य में भेद करने में दक्ष, समस्त शास्त्रों में प्रवीण, सद्गुणों के भण्डार, सदाचार के आधार, आनंद के सागर, परम तेजस्वी, सभी विद्याओं में निपुण, सबके हितकारी और सर्वत्र गति वाले हैं। 
नारद जी को बाल ब्रह्मचारी माना जाता है। परन्तु रामायण में एक ऐसी कथा का उल्लेख है जो बताता है कि एक बार नारद जी के मन में भी विवाह करने की प्रबल इच्छा जाग उठी। अगर मन में किसी वस्तु को पाने की बहुत इच्छा हो जाये तो वह आत्मा में बस जाती है और अगर वह इच्छा पूरी न हो पाए तो उस इच्छा को पूरा कने के लिए एक और जन्म लेना पड़ता है। नारद जी को भी अपनी इसी इच्छा के कारण धरती पर जन्म लेना पड़ा।एक बार एक अनुपम सुंदरी को देख कर नारद जी का मन डगमगा गया तथा उनके मन में उस सुंदरी से विवाह करने की तीव्र इच्छा जाग उठी। भगवान विष्णु ने नारद जी को समझाया और नारद जी ने उनके कहे अनुसार विवाह की इच्छा त्याग दी। परन्तु वह उस इच्छा को केवल ऊपरी तौर पर त्याग सके, आंतरिक इच्छा को वह मिटा ना सके। अपनी इच्छा को पूरा करने के लिए नारद जी को मनुष्य रूप में जन्म लेना पड़ा।इस जन्म में इनका नाम ‘संत श्री सुरसुरानंद’ था। कहा जाता है कि इनके शुभ संस्कारों के समय एक व्यक्ति आता था। जो खुद को इनका मामा और अपना नाम नारायण बताता था। यह व्यक्ति उत्सव समाप्त होने के बाद कहां चला जाता था, किसी को पता नहीं चलता था।इसी व्यक्ति ने सुरसुरानंद जी को काशी जाकर श्री रामानंदाचार्य से शिक्षा ग्रहण करने की आज्ञा दी थी। संत कबीर, रैदास, धन्ना, नाभादास भी श्री रामानंदाचार्य के शिष्यों में शामिल थे। सुरसुरानंद जी श्री रामानंदाचार्य के पास पहुँच कर उन्हें बताया कि उनके नारायण मामा ने उन्हें यहां शिक्षा ग्रहण करने के लिए भेजा है। यह बात सुन कर श्री रामानंदाचार्य बहुत प्रसन्न हुए तथा उन्होंने सुरसुरानंद जी को अपना शिष्य स्वीकार कर लिया।एक दिन सत्संग के समय शंख की ध्वनि गूंजी तो सुरसुरानंद जी बेहोश हो गये। जब वे बेहोश थे उन्हें सुनाई दिया कि मनुष्य रूप में तुम्हारा जन्म इसलिए हुआ है क्योंकि नारद रूप में तुम्हारी विवाह करने की बहुत प्रबल इच्छा थी। इस जन्म में तुम्हारी यह इच्छा पूरी हो जाएगी। बेहोशी के समय सुरसुरानंद जी को यह भी ज्ञात हुआ कि मामा रूप में स्वयं भगवान विष्णु इनकी सहायता करने के लिए आते हैं।
सुरसुरानंद जी का विवाह सुरसुरी देवी से हुआ। यह विवाह श्री रामानंदाचार्य ने करवाया। देवी सुरसुरी श्री रामानंदाचार्य की ही एक शिष्या थी। इस तरह धरती पर जन्म लेकर नारद जी की विवाह की इच्छा पूरी हुई। सुरसुरानंद जी ने अपने जीवनकाल में 500 ध्रुपद बंदिशों की रचना की थी जो आज भी रामानंदी ध्रुपद नाम से प्रचिलित हैं।

कोई टिप्पणी नहीं: