रविवार, 21 मई 2017

क्या? आप जानते है भगवान विष्णु के कितने अवतार हुए

ॐ गं गणपतये नमः 



जय श्रीकृष्ण मित्रो ! वेद, उपनिषद, पुराणों और युगों के विषय में पढ़ा। आज आप को भगवान विष्णु के विषय में कुछ जानेगे। भगवान विष्णु के कुल २४ अवतार हुए है। जिन का वर्णन बहुत विस्तृत है। श्रीमद्धभगवतमहापुराण में भगवान विष्णु के सभी अवतारों का वर्णन किया गया है, मेरी यहाँ छोटी से कोशिश की है मित्रों आप को ये ब्लॉग जरूर पसंद आयेगा।

भगवान का वर्णन करने से पहले आप को

व्‍यासनंदन योगेश्‍वर श्रीशुकदेवजी के अनमोल शब्‍द की प्रभु कथा का रस म़त्‍युलोक (पृथ्वी) को छोडकर कही भी नहीं है (इसीलिए तो देवतागण भी म़त्‍युलोक में जन्‍म पाने के लिए लालायित रहते हैं ) ।

पृथ्वी के लोगों को इसलिए "भाग्‍यवान" की संज्ञा से संबोधित करते हुये श्रीशुकदेवजी ने कहा है कि प्रभु का गुणगान करने वाली प्रभु की कथा का खूब पान करो, शरीर में जब तक चेतना रहें तब तक बार बार पान करो । इसे कभी मत छोडो, मत छोडो । 

जीव हित, जीव कल्‍याण के लिए कितना प्रबल आग्रह करके हम पर अनुग्रह किया है आत्‍मज्ञान के महासागर व्‍यासनंदन श्रीशुकदेवजी ने । 

जब व्‍यासनंदन योगेश्‍वर श्रीशुकदेवजी श्रीमद भागवत महापुराण का महात्म्य बता रहे थे तभी श्रीहरि प्रभु अपने पार्षदों सहित प्रकट हुये थे । कथामृत के कारण ही सभी को प्रभु के दुर्लभ दर्शन हुये । सभी लोगों को बड़ा आनंद हुआ था और सभी का सारा मोह नष्‍ट हो गया था । तब व्‍यासनंदन श्रीशुकदेवजी ने सकल जगत के कल्याणार्थ देवी भक्ति को अपने पुत्रों ज्ञान और वैराग्‍य के साथ इस परम पुनीत महापुराण में सदैव के लिए स्‍थापित कर दिया । इसलिए श्रीमद भागवतजी के सेवन से हृदय में भक्ति के अंकूर फुटते हैं, आध्‍यात्‍म ज्ञान (सभी ज्ञानों में श्रेष्‍ठ) जाग्रत होता है, संसार के प्रति मोह हटकर वैराग्‍य भाव आता है । और इन सब के कारण हम सच्‍चे वैष्‍णव बन जाते हैं । प्रभु तो नित्‍य वैष्‍णवों के हृदय में ही वास करते हैं । 

इस तथ्‍य की पुष्टि एक अन्‍य प्रसंग में भी होती है । एक बार देवर्षि श्रीनारदजी ने प्रभु से पुछा था कि आपके मिलने का निश्‍चित स्‍थान (गोलोक, साकेत, क्षीरसागर में से) कौन सा है, तो प्रभु ने कहा था कि मैं भक्‍तों के हृदय में सदैव ही मिलता हूँ - वहाँ मेरा निश्‍चित वास है । 

भक्ति हमें सच्‍चा वैष्‍णव बना देती है । हमारे भीतर वैष्‍णव गुण भर देती है । यही वैष्‍णव गुण प्रभु को अत्‍यन्‍त प्रिय होते हैं । संत श्रीनरसी जी ने वैष्‍णवों का सबसे श्रेष्‍ठ चित्रण अपने अमर भजन "वैष्‍णव जन तो तेने कहिये" में किया है । महात्‍मा गांधीजी ( जिनके बारे में एक श्रद्धांजलि में कहा गया था कि आने वाली पीढी कदाचित ही यह विश्‍वास कर पायेगी की हाड-मांस का एक ऐसा महामानव कभी इस धरती पर चला होगा । ) जो एक सच्‍चे वैष्‍णव थे, उनका यह अति प्रिय भजन है । "वैष्‍णव जन तो तेने कहिये" में वर्णित वैष्‍णव गुणों पर एक नजर - 

वैष्णव वह है - 
(1) जो अभिमान रहित होकर परोपकार करे - (क) दुसरो के दुःख को जाने (ख) दुःखी का उपकार करे (ग) ऐसा करने पर भी मन में अभिमान का भाव नहीं लाये , 
(2) जो सकल लोक में किसी की भी निन्दा न करे ,
(3) जो अपने वचन और कर्म को निश्‍छल (छल रहित) रखे ,
(4) जो हर जीव और प्राणी को समदृष्टि भाव से देखे ,
(5) जो मन से तृष्णा (कामना) का त्याग करे ,
(6) जो माता के भाव से परस्त्री को देखे , 
(7) जो थकी जिह्‌वा से भी असत्य नहीं बोले , 
(8) जो पराये धन पर हाथ जाते ही, जिसके हाथ जलने एंव छाले पडने का भाव आये और हाथ छिटक जाये , 
(9) जो मोह और माया में अपने मन को नहीं व्यापने (फसने) दे ,
(10) जो दृढ वैराग्य अपने मन में रखे , 
(11) जो सिर्फ और सिर्फ राम नाम की ताली बजाये ( किसी सांसारिक नाम की ताली नहीं ) ,
(12) जो मन को लोभ और कपट से रहित रखे , 
(13) जो मन को काम और क्रोध से निवृत्‍त रखे ,

उपरोक्त आचरण रखने वाला - 
(क) ऐसा पवित्र हो जाता है जैसे सकल तीर्थ उसके तन में आ बसे हो ,
(ख) कुटुम्ब में ऐसा एक भी प्राणी उस कुटुम्ब का पीढियों सहित उद्धार कर देता है ,
(ग) ऐसे आचरण युक्त वैष्णव अपने जन्म देने वाली जननी (माता) के कोख को धन्य धन्य कर देता है ।

भक्ति में ही इतनी प्रबल और प्रगाढ शक्ति होती है कि हमारे भीतर ऐसे स्वर्णिम वैष्‍णव गुण विकसित कर देती है जो प्रभु को अति प्रिय होते हैं ।




कोई टिप्पणी नहीं: