शनिवार, 27 मई 2017

आप जानते है भगवान विष्णु का छः वाँ अवतार: दत्तात्रये अवतार

ॐ गं गणपतये नमः 

भगवान विष्णु का छः वाँ अवतार : दत्तात्रये  अवतार -   

जय श्रीकृष्ण मित्रों ! आपने अब तक भगवान विष्णु के २४ अवतारों में १० अवतारों का वर्णन पढ़ा।

1- श्री सनकादि मुनि, 2- वराह अवतार, 3- नारद अवतार, 4- नर-नारायण, 5- कपिल मुनि, 6- दत्तात्रेय अवतार, 7-  यज्ञ, 8- भगवान ऋषभदेव, 9- आदिराज पृथु, 10- मत्स्य अवतार 

 पिछले ब्लॉग में आप ने श्री सनकादि मुनि, वराह, नारद, नर-नारायण और कपिलमुनि अवतार के विषय में पढ़ा।  अब आगे 







षष्ठमत्रेरपत्यत्वं वृतः प्राप्तोऽनसूयया आन्वीक्षिकीमलर्काय प्रह्लादादिभ्य ऊचिवान् ।।१०।। 

अनसूया के वर मांगने पर छठे अवतार में वे अत्री की संतान -दत्तात्रेय हुए ।इस अवतार में उन्होंने अलर्क एवं प्रहलाद आदि को ब्रह्मज्ञान का उपदेश किया l 


ब्रह्माजी के मानसपुत्र महर्षि अत्रि इनके पिता सती अनुसूया इनकी माता थीं। भगवान दत्तात्रेय का प्रादुर्भाव महर्षि अत्रि के चरम तप का पुण्यफल तथा सती अनुसूयाके परम पतिव्रता होने का सुफल है। वे योगियों के परम ध्येय होने के कारण सर्वत्र गुरुदेव कहे जाते हैं।

प्राचीनकाल से ही सद्गुरु भगवान दत्तात्रेय ने अनेक ऋषि-मुनियों तथा विभिन्न सम्प्रदायों के प्रवर्तक आचार्यो को सद्ज्ञान का उपदेश देकर कृतार्थ किया है। इन्होंने परशुरामजी को श्रीविद्या-मंत्र प्रदान किया था। त्रिपुरारहस्य में दत्त-भार्गव-संवाद के रूप में अध्यात्म के गूढ रहस्यों का उपदेश मिलता है। ऐसा भी कहा जाता है कि शिवपुत्र कार्तिकेय को दत्तात्रेय जी ने अनेक विद्याएं प्रदान की थीं। भक्त प्रह्लाद को अनासक्ति-योग का उपदेश देकर उन्हें अच्छा राजा बनाने का श्रेय इनको ही जाता है। सांकृति-मुनिको अवधूत मार्ग इन्होंने ही दिखाया। कार्तवीर्यार्जुन को तन्त्र विद्या एवं नार्गार्जुन को रसायन विद्या इनकी कृपा से ही प्राप्त हुई थी। गुरु गोरखनाथ को आसन, प्राणायाम, मुद्रा और समाधि-चतुरंग योग का मार्ग भगवान दत्तात्रेय जी ने ही बताया था। 
परम दयालु भक्तवत्सल भगवान दत्तात्रेय जी आज भी अपने शरणागत का मार्गदर्शन करते हैं और सारे संकट दूर करते हैं। मार्गशीर्ष-पूर्णिमा इनकी प्राकट्य तिथि होने से हमें अंधकार से प्रकाश में आने का सुअवसर प्रदान करती है। भगवान दत्तात्रेय का असाधारण कार्य है- अखण्ड रूप से ज्ञानदानकरते रहना। इस प्रकार ये गुरु के रूप में अपने भक्तों को अध्यात्म-ज्ञान का उपदेश देकर सांसारिक दुख से मुक्त करके उनकी अविद्या की निवृत्ति करते हैं। ये भक्त के हृदयाकाश में प्रकाशित होकर उसके अज्ञान-रूपी अंधकार को नष्ट कर देते हैं। 













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