शुक्रवार, 30 जून 2017

युग : सतयुग और त्रेतायुग एवं भगवान विष्णु के अवतार

ॐ गं गणपतये नमः 



युग : सतयुग और त्रेतायुग एवं भगवान विष्णु के अवतार 

जय श्रीकृष्ण मित्रों ! सतयुग, द्वापरयुग, कलयुग हर युग में कोई न कोई भगवान जन्म जरूर लेते है।   आज आप को युगों से अवगत कराते है। युग चार प्रकार के है :

पहला युग सतयुग 
सतयुग में भगवान विष्णु के पहले चार अवतार क्रमशः मत्स्य, कच्छप, वाराह और नृसिंह थे। जैसे हर शरीर का अंत होता है ठीक वैसे ही एक समय का अंत भी आता ही है। ऐसा माना जाता है कि सतयुग सबसे लम्बा 1,728,000 साल का  होता है, जिसमे एक सामान्य व्यक्ति 1 लाख साल तक जी सकता है जिनका कद 32 फुट लम्बा हुआ करता था।इस युग में इंसान अपनी इच्छा अनुसार मर सकता था।
सब लोग सिर्फ अच्छे कामो में रत रहते थे।
 नृत्य की उस समय कोई जगह नहीं थी क्योंकि सब लोग प्रसन्न रहते थे. न कोई बीमार पड़ता था और ना ही कोई गरीब, अमीर था सब सामान थे और
सिर्फ भगवान की भक्ति में लगे रहते थे.
इस युग में भगवान ने चार अवतार लिए थे, जिनके नाम थे वराह, नरसिम्हा कुर्मा और मत्स्य, सतयुग में सिर्फ एक ही धर्म था जो मनु शास्त्र के रूप में सब लोग निर्वहन करते थे. सबके के पास पहले से वृहद ज्ञान और शक्तिया होती थी। 

दूसरा युग त्रेतायुग 

त्रेतायुग दूसरा युग था जिसमें अधर्म का नाश करने के लिए भगवान विष्णु तीन अवतार लिए थे, जो क्रमशः वामन अवतार, परशुराम अवतार और श्रीराम अवतार के नाम से हमारे हिंदू धर्म ग्रंथों में उल्लेखित हैं।
भगवान वामन श्री हरि के पहले ऐसे अवतार थे जो मानव रूप और पांचवें अवतार के रूप में अवतार लिया गया था। उनके पिता वामन ऋषि और माता अदिति थीं। वह बौने ब्राह्मण के रूप में जन्‍मे थे। वामन भगवान को दक्षिण भारत में उपेन्द्र के नाम से भी जाना जाता है। मान्यता है कि वह इंद्र के छोटे भाई थे।
भागवत पुराण के अनुसार भगवान विष्णु ने इंद्र का देवलोक में पुनः अधिकार स्थापित करने के लिए यह अवतार लिया। दरअसल देवलोक पर असुर राजा बली ने विजयश्री हासिल कर इसे अपने अधिकार में ले लिया था। राजा बली विरोचन के पुत्र और प्रह्लाद के पौत्र थे।
उन्होने अपने तप और पराक्रम के बल पर देवलोक पर विजयश्री हासिल की थी। राजा बलि महादानी राजा थे, उनके दर से कोई खाली हाथ नहीं लौटता था। यह बात जब वामन भगवान को पता चली तो वह एक बौने ब्राह्मण के वेष में बली के पास गये और उनसे अपने रहने के लिए तीन पग के बराबर भूमि देने का आग्रह किया। उनके हाथ में एक लकड़ी का छाता था। गुरु शुक्राचार्य के चेताने के बावजूद बली ने वामन को वचन दे डाला। इस तरह भगवान ने दो पग में धरती, आकाश नाम लिया, चौथा पग उन्होंने राजा बलि के सिर पर रखा था। जिसके बाद से राजा बलि को मोक्ष प्राप्त हुआ।
परशुराम अवतार: भगवान विष्ण के छठवें अवतार के रूप में राजा प्रसेनजित की पुत्री रेणुका और भृगुवंशीय जमदग्नि के पुत्र के रूप में जन्में थे। इस अवतार में वह भगवान शिव के परम भक्त थे। इन्हें शिव से विशेष परशु(फरसा) प्राप्त हुआ था। इनका नाम तो राम था, किन्तु शंकर द्वारा प्रदत्त अमोघ परशु को सदैव धारण किये रहने के कारण ये परशुराम कहलाते थे।

त्रेतायुग में भगवान राम ने रावण का वध करने लिए जन्म लिया था, क्योंकि जब-जब इस धरती पर पाप बढ़ा है तब -तब भगवान ने इस धरती को अपना विराट रूप दिखाया है। हिन्दू धर्म में श्रीराम, श्रीविष्णु के 10 अवतारों में, सातवें अवतार हैं।  श्रीराम द्वारा सरयु में समाधि लेने से पहले माता सीता धरती माता में समा गईं थी और इसके बाद ही उन्होंने पवित्र नदी सरयु में समाधि ली। चारों युग में हनुमान जी एक मात्र ऐसे भगवान हैं जो अमर है द्वापर युग में भी हनुमान जी ने भीम को चारों युग के बारे बताया था, किस युग में क्या होता ये भी बताया था। आप पता है मित्रों ! त्रेतायुग 4 ,32 ,000 वर्षों का होता है, जिसमे एक सामान्य इंसान 10 ,000 साल तक जी सकता था। 




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गुरुवार, 29 जून 2017

पुराणों में भगवन्नाम -महिमा

ॐ गं गणपतये नमः 

जय श्रीकृष्ण मित्रों ! आप ने १८ पुराणों के बारे में पढ़ा। आज आप को पुराणों के माध्यम से भगवान नाम की महिमा के विषय में बताऊगा। पुराणों में महत्व पूर्ण क्या है।  ये मेरी छोटी से कोशिश आप के सामने है। चलिए मित्रो आज भगवन्नाम-महिमा का महत्व समझते है।

पुराणों में भगवन्नाम -महिमा 

         नारायणो नाम नरो नराणां प्रसिद्धचौरः कथितः पृथिव्याम्।

अनेकजन्मार्जितपापसंचयं हरत्यशेषं श्रुतमात्र एव।।
'इस पृथ्वी पर 'नारायण' नामक एक नर (व्यक्ति) प्रसिद्ध चोर बताया गया है, जिसका नाम और यश कानों में प्रवेश करते ही मनुष्यों की अनेक जन्मों की कमाई हुई समस्त पाप राशि को हर लेता है।'
(वामन पुराण)
न नामसदृशं ज्ञानं न नामसदृशं व्रतम्।
न नामसदृशं ध्यानं न नामसदृशं फलम्।।
न नामसदृशस्त्यागो न नामसदृशः शमः।
न नामसदृशं पुण्यं न नामसदृशी गतिः।।
नामैव परमा मुक्तिर्नामैव परमा गतिः।
नामैव परमा शान्तिर्नामैव परमा स्थितिः।।
नामैव परमा भक्तिर्नामैव परमा मतिः।
नामैव परमा प्रीतिर्नामैव परमा स्मृतिः।।
'नाम के समान न ज्ञान है, न व्रत है, न ध्यान है, न फल है, न दान है, न शम है, न पुण्य है और न कोई आश्रय है। नाम ही परम मुक्ति है, नाम ही परम गति है, नाम ही परम शांति है, नाम ही परम निष्ठा है, नाम ही परम भक्ति है, नाम ही परम बुद्धि है, नाम ही परम प्रीति है, नाम ही परम स्मृति है।'
(आदि पुराण)
नामप्रमियों का संग, प्रतिदिन नाम-जप का कुछ नियम, भोगों के प्रति वैराग्य की भावना और संतो के जीवन-चरित्र का अध्ययन – ये नाम-साधना मे बड़े सहायक होते हैं। इन चारों की सहायता से नाम-साधना में बड़े सहायक होते हैं। इन चारों की सहायता से नाम साधना में सभी को लगना चाहिए। भगवन्नाम से लौकिक और पारलौकिक दोनों प्रकार की सिद्धियाँ प्राप्त हो सकती हैं। नाम से असम्भव भी सम्भव हो सकता है और इसकी साधना में किसी के लिए कोई रूकावट नहीं है। उच्च वर्ण का हो या नीच का, पंडित हो या मूर्ख, सभी इसके अधिकारी हैं। ऊँचा वही है, बड़ा वही है जो भगवन्नामपरायण है, जिसके मुख और मन से निरन्तर विशुद्ध प्रेमपूर्वक श्री भगवन्नाम की ध्वनि निकलती है। संत तुलसीदास जी कहते हैं-
धन्य धन्य माता पिताधन्य पुत्रवर सोइ।
तुलसी जो रामहि भजेंजैसेहु कैसेहु होइ।।
तुलसी जाके बदन तेधोखेहु निकसत राम।
ताके पग की पगतरीमोरे तनु को चाम।।
तुलसी भक्त श्वपच भलौभजै रैन दिन राम।
ऊँचो कुल केहि काम कोजहाँ न हरि को नाम।।
अति ऊँचे भूधरन परभजगन के अस्थान।
तुलसी अति नीचे सुखदऊख अन्न अरु पान।।
जिस प्रकार अग्नि में दाहकशक्ति स्वाभाविक है, उसी प्रकार भगवन्नाम में पाप को, विषय-प्रपंचमय जगत के मोह को जला डालने की शक्ति स्वाभाविक है।
भगवन्नाम-जप में भाव हो तो बहुत अच्छा परंतु हमें भाव की ओर दृष्टि नहीं डालनी है। भाव न हों, तब भी नाम-जप तो करना ही है।
नाम भगवत्स्वरूप ही है। नाम अपनी शक्ति से, अपने गुण से सारा काम कर देगा। विशेषकर कलियुग में को भगवन्नाम जैसा और कोई साधन ही नहीं है। वैसे तो मनोनिग्रह बड़ा कठिन है, चित्त की शांति के लिए प्रयास करना बड़ा ही कठिन है, पर भगवन्नाम तो इसके लिए भी सहज साधन है।
आलस्य और तर्क – ये दोनों नाम-जप में बाधक हैं।
      प्रायआलस्य के कारण ही कह बैठते हो कि नाम-जप नहीं होता।
नाम लेने का अभ्यास बना लो, आदत डालो।
'रोटी-रोटी करने से ही पेट थोड़े ही भरता है?' इस प्रकार के तर्क भ्रांति लाते हैं, पर विश्वास करो, भगवन्नाम 'रोटी' की तरह जड़ शब्द नहीं है। यह शब्द ही ब्रह्म है। 'नाम' और नामी में कोई अन्तर ही नहीं है।
'नाम लेत भव सिंधु सुखाहीं' इस पर श्रद्धा करो। इस विश्वास को दृढ़ करो। कंजूस की भाँति नाम-धन को सँभालो।
नाम के बल से बिना परिश्रम ही भवसागर से तर जाओगे और भगवान के प्रेम को भी प्राप्त कर लोगे। इसलिए निरन्तर भगवान का नाम लो, कीर्तन करो।  
कलेर्दोषनिधे राजन्नस्ति ह्येको महान् गुणः।
कीर्तनादेव कृष्णस्य मुक्तसंगः परं व्रजेत्।।
'राजन् ! दोषों के भंडार – कलियुग में यही एक महान गुण है कि इस समय श्रीकृष्ण का कीर्तनमात्र करने से मनुष्य की सारी आसक्तियाँ छूट जाती हैं और वह परम पद को प्राप्त हो जाता है।'
(श्रीमद् भागवत)
यदभ्यर्च्य हरिं भक्त्या कृते क्रतुशतैरपि।
फलं प्राप्नोत्यविकलं कलौ गोविन्दकीर्तनात्।।
'भक्तिभाव से सैंकड़ों यज्ञों द्वारा भी श्रीहरि की आराधना करके मनुष्य जिस फल को पाता है, वह सारा-का-सारा कलियुग में भगवान गोविन्द का कीर्तनमात्र करके प्राप्त कर लेता है।'
(श्रीविष्णुरहस्य)
ध्यायन् कृते यजन् यज्ञैस्त्रेतायां द्वापरेऽर्चयन्।
यदाप्नोति तदाप्नोति कलौ संकीर्त्य केशवम्।।
'सत्ययुग में भगवान का ध्यान, त्रेता में यज्ञों द्वारा यजन और द्वापर में उनका पूजन करके मनुष्य जिस फल को पाता है, उसे वह कलियुग में केशव का कीर्तनमात्र करके प्राप्त कर लेता है।
(विष्णु पुराण)
संत कबीरदास जी ने कहा हैः
सुमिरन की सुधि यों करोजैसे कामी काम।
                                                एक पलक न बीसरै, निस दिन आठों याम।।
सुमिरन की सुधि यों करोज्यों सुरभी सुत माँहि।
कह कबीर चारो चरतबिसरत कबहूँ नाँहि।।
सुमिरन की सुधि यों करोजैसे दाम कंगाल।
कह कबीर बिसरे नहींपल-पल लेत सम्हाल।।
सुमिरनसों मन लाइयेजैसे नाद कुरंग।
कह कबीर बिसरे नहींप्रान तजै तेहि संग।।
सुमिरनसों मन लाइयेजैसे दीप पतंग।
                                                प्रान तजै छिन एक मेंजरत न मोड़े अंग।।
सुमिरनसों मन लाइयेजैसे कीट भिरंग।
कबीर बिसारे आपकोहोय जाये तेहि रंग।।
सुमिरनसों मन लाइयेजैसे पानी मीन।
प्रान तजै पल बीछड़ेसंत कबीर कह दीन।।
'सुमिरन इस तरह करो जैसे कामी आठ पहर में एक क्षण के लिए भी स्त्री को नहीं भूलता, जैसे गौ वन में घास चरती हुई भी बछड़े को सदा याद रखती है, जैसे कंगाल अपने पैसे का पल-पल में सम्हाल करता है, जैसे हरिण प्राण दे देता है, परंतु वीणा के स्वर को नहीं भूलना चाहता, जैसे बिना संकोच के पतंग दीपशिखा में जल मरता है, परंतु उसके रूप को भूलता नहीं, जैसे कीड़ा अपने-आपको भुलाकर भ्रमर के स्मरण में उसी के रंग का बन जाता है और जैसे मछली जल से बिछुड़ने पर प्राणत्याग कर देती है, परंतु उसे भूलती नहीं।'

स्मरण का यह स्वरूप है। इस प्रकार जिनका मन उस परमात्मा के नाम-चिन्तन में रम जाता है, वे तृप्त और पूर्णकाम हो जाते हैं।कलियुग में भगवान की प्राप्ति का सबसे सरल किंतु प्रबल साधन उनका नाम-जप ही बताया गया है।

श्रीमद्भागवत का कथन है-" यद्यपि कलियुग दोषों का भंडार है तथापि इसमें एक बहुत बडा सद्गुण यह है कि सतयुग में भगवान के ध्यान (तप) द्वारा,

 त्रेतायुग में यज्ञ-अनुष्ठान के द्वारा,

द्वापरयुगमें पूजा-अर्चना से जो फल मिलता था,

 कलियुग में वह पुण्यफल श्री हरिके नाम-संकीर्तन(हरे कृष्ण महामंत्र) मात्र से ही प्राप्त हो जाता है।

 कृष्णयजुर्वेदीय कलिसंतरणोपनिषद् मे लिखा है कि द्वापरयुगके अंत में जब देवर्षिनारद ने ब्रह्माजीसे कलियुग में कलि के प्रभाव से मुक्त होने का उपाय पूछा, तब सृष्टिकर्ता ने कहा-

आदिपुरुष भगवान नारायण के नामोच्चारण से मनुष्य कलियुग के दोषों को नष्ट कर सकता है। नारदजीके द्वारा उस नाम-मंत्र को पूछने पर हिरण्यगर्भ ब्रह्माजीने बताया-

हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे।
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।


यह महामंत्र कलि के पापों का नाश करने वाला है। इससे श्रेष्ठ कोई अन्य उपाय सारे वेदों में भी देखने को नहीं आता।

जय श्रीकृष्ण मित्रों ! आज भगवन्नाम के विषय में पढ़ा। 

मंगलवार, 27 जून 2017

जीवन में तुरंत शांति पाने के लिए पढ़े श्रीरामसुखदासजी के विचार (भाग-तीसरा)

ॐ गं गणपतये नमः 




जय श्रीकृष्ण मित्रों ! श्रीरामसुखदासजी के विचार जो तुरंत शांति प्रदान करते है, हमारे अंदर जब नकारात्मक विचार आते है और दुःख का समय हो तो ये विचार हमारे जीवन में शांति के साथ आध्यात्मिकता की ओर भी बढ़ाते है कल कुछ विचार पढ़े आज आगे बढ़ते है पढ़ते है अनमोल विचार : 


🚩एकांत में रहते हुए,

🚩 गंगा स्नान करते हुए,


🚩 भगवान का पूजन करते हुए,


🚩श्री तुलसी कि परिक्रमा करते हुए


🚩श्री हरि के चिन्तन में भी समय व्यतीत करें l





💠

जैसे बच्चा खेलते खेलते माँ को भूल भी जाए पर माँ कभी बच्चे को नही भूलती

💠

ऐसे ही उस परमात्मा का प्रेम तो माता से कहीं अधिक है, तो मैं क्यों चिंता करूँ भगवान स्वयम मेरा भार उठाएंगे l

गीतामें सैकड़ों ऐसे श्लोक हैं जिनमें से एक को भी पूर्णतया धारण करनेसे मनुष्य मुक्त हो जाता है, फिर सम्पूर्ण गीताकी तो बात ही क्या है

जबतक अपनी इच्छा रखोगे, तबतक संसार आदर नहीं करेगा।

🔔अपनी इच्छा छोड़ कर व्यवहार करो।"-


🚩श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज🚩

🔔"स्वार्थ के कारण खुद खाने में आनंद आता है।

🔔 स्वार्थ न हो तो दूसरों को खिलाने में आनंद आता है।"-


🚩श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज🚩


🔔जहाँ राग-द्वेष,

हर्ष-शोक,
अच्छा-मंदा,
अनुकूल-प्रतिकूल आदि दो चीजें रहती हैं, वह संसार है।

🔔दो चीजें मिटकर एक समता हो जाए तो वह परमात्मा है।"-

🚩श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज🚩




सोमवार, 26 जून 2017

तुरंत शांति पाने के लिए पढ़े श्रीरामसुखदासजी के विचार (भाग-दूसरा)

ॐ गं गणपतये नमः 




जय श्रीकृष्ण मित्रों ! श्रीरामसुखदासजी के विचार जो तुरंत शांति प्रदान करते है, हमारे अंदर जब नकारात्मक विचार आते है और दुःख का समय हो तो ये विचार हमारे जीवन में शांति के साथ आध्यात्मिकता की ओर भी बढ़ाते है कल कुछ विचार पढ़े आज आगे बढ़ते है पढ़ते है अनमोल विचार :