ॐ श्रीपरमात्मने नमः
ज्ञानकर्मसंन्यासयोग
चौथा अध्याय
जय श्रीकृष्ण मित्रों ! अब तक मित्रों आप ने पढ़ा भगवान श्रीकृष्णजी को ज्ञानसंयास योग के बारे में बताया अब आगे :
श्रीभगवानुवाच ---
कई ज़ब्त से योग ऐसा कमाये,
दिल-ओ जां में उरफ़ा की आतिश जलाये।
हों अफ़्फ़ाल - हिस या हों अफ़्फ़ाल - ए दम,
इसी ज्ञान अग्नि में कर दें भसम। (२७)
कई धन और तप से करते हैं यज्ञ,
कई योग और जप से करते हैं यज्ञ।
कई लोग करते हैं यज्ञ ज्ञान से,
वो ऐहद अपना पूरा करें ज्ञान से। (२८)
कई इन्सां दम में देखाये कमाल,
कि यज्ञ उन का है रोकना दम की चाल।
वो दम अपने करते हैं कुरबान यूं,
दरूँ में बरूँ और करूँ में दरूँ। (२९)
करे रख के ज़ब्त - ए ग़िजा-ए बदन,
करें प्राण पर प्राण अपने हवन।
उन्हें यज्ञ के इसरार मालूम हैं,
वो यज्ञ के सबब पाक महसूस हैं। (३०)
वो अमृत के लुकमे जो यज्ञ से बचें,
उन्हें खाने वाले ख़ुदा में रचें।
हैं अर्जुन वो महरूम छोड़े जो यज्ञ,
न यह जग ही उस का न अगला ही जग। (३१)
बहुत यज्ञ के आमाल - ओ दस्तूर हैं,
जो ब्रह्मा यानी वेदों में मज़कूर हैं।
कि यज्ञ सारे कर्मों की औलाद है,
जो ऐसा समझ ले, वो आज़ाद है। (३२)
करे साज-ओ समाँ से इन्सान यज्ञ,
मगर से बेहतर समझ ज्ञान यज्ञ।
सुन अर्जुन अगर तुझ को पहचान है,
कि हर कर्म की इन्तहा ज्ञान है। (३३)
जो ज्ञानी हैं तू उन की तहज़ीम कर,
हसूल उन से उरफ़ा की तालीम कर।
समझ उन से सब कुछ बा-इज़ ओ न्याज़,
तू कर उन की सेवा, तू सीख उन से राज़। (३४)
जो अर्जुन मिले ज्ञान उलझन हो दूर,
तो हो इस हक़ीक़त का तुझ पर ज़ऊर।
कि सारा जहाँ है तेरी ज़ात में,
तेरी ज़ात यानी मेरी ज़ात में। (३५)
जो पापी है या तू गुनहगार है,
गुनहगार बन्दों का सरदार है।
तो फिर ज्ञान नैया पे हो जा सवार,
गुनाहों के सागर से कर देगी पार। (३६)
सुन अर्जुन जो अम्बर - ए ख़ाशाक है,
लगे आग इस में तो सब ख़ाक है।
यूही ज्ञान अग्नि में जाते हैं जल,
बुरे हों अमल या भले हों अमल। (३७)
नहीं शय जहाँ में कोई ज्ञान - सी,
करे पाक फ़ितरत जो इन्सान की।
अगर पुख़्तगी योग में पायेगा,
तो खुद ज्ञान भी उस को हो जायेगा। (३८)
वो ज्ञानी है जिस को हो पुख़्ता यकीं,
हवास अपने रखे जो ज़ेर -ए नगीं।
उसे ज्ञान हासिल हो इन्जाम कार,
वो पाये ख़ुदाई सकून-ओ करार। (३९)
वो जाहिल नहीं जिस को दिल का यकीं,
तजज्ज्ब से पहुँचे फ़ना के करी।
रहे डगमगाता न हो शादमाँ,
यह दुनिया है उस की न अगला जहाँ। (४०)
किया योग से जिस ने तर्क-ए अमल,
कटे ज्ञान से जिस के वहम-ओ खलल।
वही आत्मा का जिसे ज्ञान है,
कहाँ उस को कर्मों से नुकसान हैं। (४१)
जहालत से पैदा हुए हैं जो शक,
मिटा ज्ञान की तेग़ से यक-बयक।
उठ ऐ भारत! और छोड़ सब वहम - ख़ाम,
तू रख योग में दिल को कायम मुदाम। (४२)
जय श्रीकृष्ण मित्रो ! आज चौथा अध्याय समाप्त हुआ। कल इस की व्याख्या पढ़ेगे आप, अतः पढ़ने न भूले। आप हमारे इस ब्लॉग को फेसबुक पर ऐप को अपने मोबाइल पर डाउनलोड कर सकते है और इस भगवतगीता के सुंदर श्लोको का पठन कर सकते है। ये ऐप गूगल+,से भी डाउनलोड कर सकते है, आप देश - विदेश का प्रेम है जो ये सब सुविधा आप को दे पाया।
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